मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

एकताल

 जब दिए में रहे छलकता घी-तेल

रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल


इधर-उधर न जलाएं भूल पंक्तियां

किधर-किधर देखिए हैं रिक्तियां

अनुरागी उत्तम विभेद का क्यों खेल

रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल


एक जलाए फुलझड़ी दूजा सुतली बम

कही दिया लौ कहीं बिजली चढ़ खम्ब

एकरूपता में भव्यता खिले जस बेल

रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल


एक माला सुंदर गूंथे बहुरूप बहुरंग

एकताल सुरताल संगीत दिग-दिगंत

दीपोत्सव आत्मउत्सव ना पटाखा खेल

रंग लाती ज्योति-बाती-दिया मेल।


धीरेन्द्र सिंह

29.10.2024

13.23