उन्मुक्त अभिव्यक्तियाँ
न तो समाज में
न साहित्य में,
नियंत्रण का दायरा
हर परिवेश में,
सभ्य और सुसंस्कृत
दिखने की चाह
घोंटती उन्मुक्तता
छवि आवेश में,
खंडित अभिव्यक्तियाँ
उन्मुक्तता के दरमियां
भावनाओं को कर रहीं
कुंठित,
मानव तन-मन अब
अंग-खंड आबंटित।
धीरेन्द्र सिंह