मैंने तुमको बांध लिया सिरहाने
से
जीवन उत्सव होता संग फहराने से
क्या घटता क्या बंटता समय आधीन
क्या बचता कब फंसता कर्म आधीन
पनघट रहे छलक भाव संग इतराने
से
जीवन उत्सव होता संग फहराने से
कब बह जाओ संग समय किलकारी
कहीं रिक्तता रच कहीं नई चित्रकारी
स्वार्थ, भय लिया लपेट
सिरहाने से
जीवन उत्सव होता संग फहराने से।
धीरेन्द्र सिंह
30.12.2023
13.17