जंगल, पर्वत, झरने, नदियां
सब तेरे नयनों की बतियाँ
कोई कुछ भी तुन्हें जैसे बोले
हिय मेरे तेरा मौसम ही डोले
तुम लगती हो प्रिए गलबहियां
सब तेरे नयनों की बतियाँ
यहां वादियां मिलती कहां ऐसे
तेरे नयनों की मदमाती धुन जैसे
विचरूं उनमें भर सांसे सदियां
सब तेरे नयनों की बतियाँ
पुतली, पलक जीवन झलक
देखूँ चाहूं तुझे जीवन ललक
ढलक न मेरी नयन सूक्तियाँ
सब तेरे नयनों की बतियाँ।
धीरेन्द्र सिंह
15.07.2024
11.05