सर्जना प्रातः उल्लसित हो भरे सघन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन
यह भी तो है एक बौद्धिक अनुराग
पहले ही देती कुहुक क्या करें काग
भावनाएं कल्पना संग करें व्योम गमन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन
शब्दों की धड़कन में हैं नई फड़कन
खनक उठते शब्द रसोई के हों बर्तन
सुबह लगे जैसे कर रहा मन भजन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन
सहजता ठीक जीवन करें क्यों दिखावा
मेरी रचनाएं प्रेम का ही हैं बुलावा
प्रत्येक दृष्टि का अभिनव है तकन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन
प्रतिक्रियाएं भी हैं कल्पना की उल्काएं
शब्द भरे प्रोत्साहन लेखन भाव जगाएं
हृदय आदर से करे आप सबका नमन
मेरी रचना पर प्रथम आगमन चितवन।
धीरेन्द्र सिंह
06.04.2024
29.01