जब हृदय पुष्पित हुआ
प्रणय आभासित हुआ
व्योम तक गूंज उठी
दिल आकाशित हुआ
अभिव्यक्तियों की उलझनें
भाव आशातित हुआ
प्रणय की पुकार यह
सब अप्रत्याशित हुआ
राम की सी प्राणप्रतिष्ठा
महक मर्यादित हुआ
अरुण योगीराज सा
मनमूर्ति परिचारित हुआ
हृदय उल्लसित कुसुमित
सुगंध पर आश्रित हुआ
प्रणय बिन कहे बहे
व्यक्ति बस मात्रिक हुआ।
धीरेन्द्र सिंह
29.01.2024
08.45