कौन है सम्पूर्ण और अपूर्ण कौन
सागर की लहरें मंथर पहाड़ मौन
ज़िंदगी के वलय में एकरूपता कहॉ
तलाशते जीवन में मिल रहे हैं द्रोन
एकलव्यी चेतनाएं अप्रासंगिक बनीं
दरबारियों के विचार हैं तिकोन
अब मुखौटा देखकर लगती मुहर
हर नए हुजूम को बनाती पौन
लक्ष्य के संधान की विवेचनाएं
देगा परिणाम अब बढ़कर कौन.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.