सांझ पलकों में उतरी, सूर्य खिसका
आत्मभाव बोले कौन कहां किसका
चेतना की चांदनी में लिपटी भावनाएं
मुस्कराहटों में मछली गति कामनाएं
मेघ छटा है, बादल बरसा न बरसा
आत्मभाव बोले कौन कहां किसका
घाव हरे, निभाव ढंके, करे अगुवाई
दर्द उठे, बातें बहकी, छुपम छुपाई
जीवन एक दांव, चले रहे उसका
आत्मभाव बोले कौन कहां किसका
भ्रम के इस सत्य का सबको ज्ञान
घायल तलवार पर आकर्षक म्यान
युद्ध भी प्यार है, दाह है विश्व का
आत्मभाव बोले कौन कहां किसका।
धीरेन्द्र सिंह
31.03.2024
19.42