भावों से भावना का जब हो विवाद
तथ्य तलहटी से तब गंभीर संवाद
उचित लगे या अनुचित कृत्य वंशावली
आस्थाओं की गुम्बद से हो निनाद
धुंध भरी भोर में दब जाती रोशनी
सूरज भी ना उभर पाए ले प्रखरवाद
अपेक्षाएं चाहें सुरभित, सुगंधित सदा
संभव है क्या जी पाना बिन प्रतिवाद
प्रकृति की तरह व्यवहार लगे परिवर्तित
तथ्य रहे सदा अपरिवर्तित निर्विवाद
यह कहना कि वक़्त का है खेल यह
इंसानियत यूँ ही कब हो सकी आबाद।
धीरेन्द्र सिंह