गुरुवार, 3 मार्च 2011

सत्य,असत्य

सत्य का असत्य का है प्रादुर्भाव यहॉ
किसका पलड़ा भारी है ख़बर नहीं
हर किसी परिवेश में यह युग्मता
एकनिष्ठ हो मानव इसकी सबर नहीं

जीत ही अब मीत है यह रीत है
सत्य, अहिंसा मानो कोई डगर नहीं
अपनी दुनिया, अपनी झोली, स्वार्थ बस
शब्दों में है सांत्वना सच मगर नहीं

नित नए प्रलोभनों से जूझता यथार्थ
साख, प्रतिष्ठा, वैभव निर्मल नज़र नहीं
प्रतिभाएं हैं हाशिए पर स्वंय में तल्लीन
जुगाड़ुओं की चल रही कहीं बसर नहीं

सत्य समर्थित है पूर्ण समर्पित यहॉ
सत्य का संघर्ष है कैंची कतर नहीं
जो टिका है सत्य पर साधक, संज्ञानी है
युग प्रवर्तक है वही शब्दहीन अधर नहीं.

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.