न कोई बरगलाहट है न कोई सुप्त चाहत है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है
बहुत बेतरतीब चलती है अक्सर जिंदगानी भी
बहुत करीब ढलती है अविस्मरणीय कहानी भी
मन नहीं हारता तन में अबोला अकुलाहट है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है
कर्म के दग्ध कोयले पर होते संतुलित पदचाप
भाग्य के सुप्त हौसले पर ढोते अपेक्षित थाप
कभी कुछ होगा अप्रत्याशित यह गर्माहट है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है
बहुत संकोची होता है जो अपने में ही रहता
एक सावन अपना होता है जो अविरल बरसता
अंकुरण प्रक्रिया में कामनाओं की गड़गड़ाहट है
वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है।
धीरेन्द्र सिंह
07.01.2025
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