विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
है लक्ष्य खड़ा लगे प्रतिद्वंदी बड़ा
अब चिंतन में ना निर्झर बहना
पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना
एक संग बना जीवन प्रसंग है
हो मुक्त समीर सा बहते रहना
एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना
रहे कुछ ना अटल, है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
रहे कुछ ना अटल, है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी के सोच से क्या करना.
मांझी के सोच से क्या करना.
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.