विश्व हिंदी दिवस
दस जनवरी
बोल रहा है
बीती विभावरी,
अब न वह ज्ञान
न शब्दों के प्रयोग
नव अभिव्यक्ति नहीं
विश्व हिंदी कैसा सुयोग,
घोषित या अघोषित
यह दिवस क्या पोषित
क्या सरकारी संरक्षण
या कोई भाव नियोजित,
न मौलिक लेखन
न मौलिक फिल्माकंन
ताक-झांक, नकल-वकल
क्या है अपने आंगन ?
हिंदी की विभिन्न विधाएं
कभी प्रज्वलित तो फडफ़ड़ाएं
भाषा संवर्धन पड़ा सुप्त
हिंदी की मुनादी फिराएं।
धीरेन्द्र सिंह
09.01.2025
15.44