शनिवार, 5 अप्रैल 2025

काव्य

 अधिकांश, काव्य शब्दों में समझते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं झुलसते हैं


लगता है प्रतीक, बिम्ब धुंध हो गए

भाव काव्य के कैसे अब कुंद हो गए

शब्द को पकड़ लोग क्यों सुलगते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं झुलसते है 


काव्य लेखन भ्रमित या काव्य समझ

काव्य बेलन सहित या भाव हैं उलझ

शब्द-शब्द काव्य अर्थ क्यों समझते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं सुलगते हैं


भावनाएं भर-भर शब्द चयन होते हैं

कामनाएं, कल्पनाएं काव्य नयन होते हैं

काव्य को संपूर्णता से न सुलझते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं सुलगते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

05.04.2025

23.38

पुणे।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

हिंदी समूह

 हिंदी समूह से जुड़ना

मेरा भाषा कर्तव्य है

तू बता समूह सफल

साहित्य क्या महत्व है?


कितने समूह छोड़ दिया

जो कहते भव्य हैं

कुछ ने मुझे निकाला

सोच बेबाक तथ्य है


सदस्य संख्या की भूख

साहित्य बुझा घनत्व है

बेतरतीब बढ़ रहा लेखन

रचना यही तत्व है


कुछ आते समय काटने

समूह टाइमपास भव्य है

कोई नहीं सचेतक वहां

कहते समूह सभ्य है।


धीरेन्द्र सिंह

08.16

05.04.2025

चैत्र नवरात्रि

 चैत्र नवरात्रि

जुड़े धर्मयात्री

कर्म आराधना

दुर्गा सर्वदात्री


व्रत है साध्य

लक्ष्य जगदात्री

आदिशक्ति माँ

सिद्ध हो नवरात्रि


पीड़ाएं वहन

क्रीड़ाएं दात्री

पीड़ा का बोझ

मैं जगयात्री


शौर्य दे शक्ति

तौर सर्वधात्री

हृदय लौ लपक

शुभ नवरात्रि🙏


धीरेन्द्र सिंह

04.04.2025

20.14



मॉडरेशन

 साहित्य और संस्कृति का हो निज आचमन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन


समूह का आधार होगा, चयन मॉडरेटर का

समूह संस्थापक भी हैं, एडमिन साकार सा

साहित्य मर्म की संवेदनाओं का हो गमन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन


हल्के-फुल्के मजाक दो-चार पंक्ति काव्य

ऐसे समूह में मॉडरेशन चुनौती न संभाव्य

विभिन्न हिंदी विधा हो तो चुनौतियां सघन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन


आवश्यक नहीं हिंदी पीएचडी हो हिंदी ज्ञाता

कई पुस्तकें हों प्रकाशित हिंदी की जिज्ञासा

मगन, मुग्ध, मौलिक हिंदी के प्रति नयन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन।


धीरेन्द्र सिंह

04.04.2025

15.45

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

नग्नता

 वस्त्र की दगाबाजी

कहां से सीखा मानव

कब कहा प्रकृति ने

ढंक लो तन कपड़ों से,

सामाजिकता और सभ्यता का दर्जी

सिले जा रहा कपड़े

मानवता उतनी ही गति से

होती जा रही नग्न,

क्या मिला 

ढंककर तन,


धरती, व्योम पहाड़, जंगल

जल, अग्नि, वायु सब हैं नग्न,

जंगल में कैसे रह लेते हैं

पशु, पक्षी वस्त्रहीन

नहीं बहती जंगल में

कामुकता और अश्लीलता की बयार,

क्या मनुष्य ने

चयन कर वस्त्र

किया निर्मित हथियार ?


नग्न जीना नहीं है

असभ्यता या कामुकता

बल्कि यह 

स्वयं का परिचय,

स्वयं पर विश्वास,

शौर्य की सांस, 

शालीनता का उजास है,

नग्न कर देना

आज भी सशक्त हथियार है

मानवता

वस्त्र में गिरफ्तार है।


धीरेन्द्र सिंह

01.04.2025

16.49



सोमवार, 31 मार्च 2025

छल

 जो बीत गया वह सींच गया चिंतन कैसा

जो होगा वह भविष्य सोच अकिंचन कैसा

वर्तमान को ना लिखना है असाहित्यिक

आज का लेखन ना हो तो मंथन कैसा


मन के संदूक से निकली फैली वह चादर

सलवट कई सुगंध वही एहसास भी वैसा

मन को टांग बदन को हो कैसा अभिमान

प्रकृति दिखती वैसी मनोभाव हो जैसा


बोर कर देती है तुम्हारी विगत रचनाएं

प्यास एक अनबुझी चाह में हो समझौता

वर्तमान को छुपा विगत का गुणगान हो

वर्तमान से छल को कौन दे रहा न्यौता।


धीरेन्द्र सिंह

31.03.2025

23.01



रविवार, 30 मार्च 2025

वह

 सत्य सम्पूर्ण अपना जब जतलाया रूठ गईं

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गईं


मुझे ना पसंद कुछ छिपाना कुछ जताना

पारदर्शी ही होता है जिसे कहते हैं दीवाना

यह पारंपरिक प्रथा है नहीं है बात कोई नई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई


प्यार पर गौर करें तो उसका कोई तौर नही 

यार को भ्रम में रखें यह शराफत दौर नहीं

प्यार आध्यात्म का रूप है भक्ति रूप कई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई


पारदर्शिता ही प्यार का है सर्वप्रमुख रीत

प्यार तुमसे किया तुम में ही लिपटा गीत

मेरी बातों पर तुम्हारा “उफ्फ़” प्रतीक कई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई


कहा गया है नारी को समझना आसान नहीं

कल मेरी रचना को लाइक कर चली कहीं

इतने से अलमस्त हृदय निकसित भाव कई

एक सदमा सा लगा और जैसे वह टूट गई।


धीरेन्द्र सिंह

30.03.2025

20.43