शनिवार, 21 दिसंबर 2024

प्रौसाहित्य

 प्रौसाहित्य और प्रौसाहित्यकार


जो भी देखा लिख दिया यह हौसला है

रचनाकार वही जिसका ऐसा फैसला है


रुचिकर अरुचिकर साहित्य नहीं होता

उगता अवश्य है मन से सर्जन बोता

शब्द मदारी कलम दुधारी जलजला है

रचनाकार वही जिसका ऐसा फैसला है


साधना को मांजना ही प्रौसाहित्य है

प्रौद्योगिकी नहीं तो लेखन आतिथ्य है

प्रौसाहित्य पसर रहा बसर ख़िलाखिला है

रचनाकार वही जिसका ऐसा फैसला है


प्रौसाहित्य में लेखन नित धुआंधार है

प्रतिक्षण मिलता सूचनाओं का अंबार है

प्रौसहित्यकार का कारवां हिलामिला है

रचनाकार वही जिसका ऐसा फैसला है।


धीरेन्द्र सिंह

22.12.2024

10.59




दरकार

 सर्दियों में गर्म साँसों की ही फुहार है

अश्रु बर्फीले टपकते किसको दरकार है


कब छला, कौन छला, कब रुका तो चला

अंकुरण की खबर नहीं संग हवा बह चला

नीतियों की रीतियों में बसा झंकार है

अश्रु बर्फीले टपकते किसको दरकार है


भावनाओं के भंवर में तरसते ही रह गए

कामनाओं में संवर यूं बरसते ही बह गए

भींग जाने पर बोले जेठ की बयार है

अश्रु बर्फीले टपकते किसको दरकार है


मन फुदकते बोले यह नहीं तो वह डाल

स्वर अलापता ही रहा मिला न सही ताल

सत्य उभरा मन ही अपना सरकार है

अश्रु बर्फीले टपकते किसको दरकार है।


धीरेन्द्र सिंह

21.12.2024

15.35




शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

पोस्ट

अति व्यस्तता में जो रचना न गयी लिखी
बोल उठीं ”आज आपकी पोस्ट नहीं दिखी”

लेखन हो निरंतर तो नित्य के होते पाठक
सब होते रचनाकार लेखन के नए साधक
अभिनव ऊर्जा देते पाठक सखा और सखी
बोल उठी “आज आपकी पोस्ट नहीं दिखी”

सुवासित हुई रचनाएं भी पढ़ उनकी पंक्ति
यह व्यक्ति की प्रशंसा या सर्जन आसक्ति
कई भावनाएं उपज करें बातें बहकी-बहकी
बोल उठी “आज आपकी पोस्ट नहीं दिखी”

मैसेंजर पर लिखीं करती नही टिप्पणियां
खो जाती कभी बातें हम-दोनों के दर्मियाँ
समूह ओर ना बढ़ीं मैसेंजर पर यूं चहकी
बोल उठी “आज आपकी पोस्ट नहीं दिखी”।

धीरेन्द्र सिंह
20.12.2024
21.42


मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

चाह

 दियासलाई

एक दिए को

ज्योतिर्मय करने को

आमादा है,

तीलियाँ कसमाती

कब जल जाना है,

एक-दूसरे से जुड़ा

कैसा तानाबाना है,

मन एक तीली

हृदय दियासलाई

तुम दिया अंकुराई,

ऊर्जाएं तीली का सिरा

धरती सा गोल

या तुम्हारी पुतलियों सा,

हृदय के बाह्य तल पर

पटक अपना सर

जल जाने को आमादा,

चलो दीपावली मनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

18.12.2024

07.15




सोमवार, 16 दिसंबर 2024

नारी

 पग बढ़ा अंगूठे से खींचती हैं क्यारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी


चाह है, राह है, उमंगों की घनी छांह

उठती, उड़ती रुक जाती है सिकोड़ बांह

हाँथ होंठों पर रखी जब भावना किलकारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी


क्या बुरा है क्या भला है नारीत्व में पला

संस्कृति और संस्कार इनका, जग है ढला

संरचना यही संरचित यही लगें सर्वकार्यभारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी


लखि उपवन दृग चितवन भावनाएं गहन

जो सोचें पूरा न कहें मर्यादाओं के सहन

खंजन नयन कातिल मुस्कान लगें हितकारी

लक्ष्मण रेखा के बिना बढ़ती ना नारी।


धीरेन्द्र सिंह

16.12.2024

16.07



रविवार, 15 दिसंबर 2024

जाकिर

 शब्द थाप से मिल गए भावों को सहला

जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला


श्रेष्ठतम संगीतज्ञ संग की हैं जुगलबंदी

तबला है इश्क़ कैसा की है नुमाइंदगी

तिहत्तर की उम्र में गए हो गया मसला

जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला


थिरकती अंगुलियों का तबले से वह प्यार

झूमते गर्दन नाचते केश तबला वादन साकार

कहां तबले पर जादू का कार्यक्रम है अगला

जाकिर हुसैन आवाज का मिजाज तबला।


धीरेन्द्र सिंह

15.12.2024

22.46



शनिवार, 14 दिसंबर 2024

मर-मर जीने में

 कोई जब याद करता है बरसते भाव सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


हर घड़ी प्यार की पुचकार भरी जग आशाएं

क्या पड़ी किसपर कोई भला क्यों बतलाए

सजाता रचकर ऐसे विश्वास पहने नगीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


कहां से बांधकर लाती हवाएं यादों के बस्ते

कहां से भाव आ जाते कसक यादों से सजते

यह यादें भी हैं कैसे जानती बरसना सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में


कोई छूटकर भी छूटता नहीं लगे छूट गया

नयन भाव फूटकर भी फूटता नहीं बने नया

एक अंकुर निर्जला गुल खिलाता सुगंध सीने में

वही वादी लगे खाईं है लरजते मर-मर जीने में।


धीरेन्द्र सिंह

15.12.2024

13.06