आपकी गतिशीलता गति करे प्रदान
आपकी प्रगतिशीलता निर्मित करे अभिमान
आप साथी आप संगी आप ही अंतरंग हैं
आप ही गोधूलि मेरी आप ही तो बिहान
आप से निबद्ध हूं निमग्न आप में प्रिए
आप की सहनशीलता में घुला सम्मान
आप मेरे आलोचक, समीक्षक हैं शिक्षक
आपकी कुशलता संजोए संचलन कमान
हृदय ही सर्वस्व है वर्चस्व उसका ही रहे
हृदय की आलोड़ना में प्रीत का बसे गुमान
कौन उलझे सांसारिक रिश्तों की क्रम ताली में
हृदय जिसे अपनाएं प्रियतम उससे ही जहान
मानव निहित अति शक्तियां अप्रयोज्य पड़ीं
इन शक्तियों में सम्मिलित कई नव वितान
भाग्य ही भवसागर है कर्म की कई कश्तियां
कौन किसका कब बने इसका न अनुमान।
धीरेन्द्र सिंह