तुम नयनों का प्रच्छा लन हो
तुम अधरों का संचालन हो
हृदय तरंगित रहे उमंगित
ऐसे सुरभित गति चालन हो
संवाद तुम्हीं उन्माद तुम्हीं
मनोभावों की प्रतिपालन हो
जिज्ञासा तुम्हीं प्रत्याशा तुम्हीं
रचनाओं की नित पालन हो
कैसे कह देती वह चाह नहीं
हर आह की तुम ही लालन हो
हर रंग तुम्हीं कोमल ढंग तुम्हीं
नव रतिबंध लिए मेरी मालन हो।
धीरेन्द्र सिंह