कहीं कभी संग मेरे कभी बन पतंग लुटेरे
कभी बनकर पुरवैया लगो बिन मांझी नैया
मेरे संग चलती हो और बरबस खिलती हो
धारा के विपरीत चलो खुद बनकर खिवैया
आधुनिक नार हो नयी शक्ति हो आधार हो
स्वाभिमान इतना जुड़ ना पाए तुमसे छैयां
ना जाने होता क्या मुझसे जब मिलती हो
एक कोमल तरंग सी उड़ लेती हो बलैयां
कोकिल स्वर में कहा था जब तुमने मुझसे
मुकर गया था फिर भी न तुम छोड़ी बईयाँ
अपने एहसासों को ना दे सके रिश्ता मिलकरमुकर गया था फिर भी न तुम छोड़ी बईयाँ
लड़खड़ा गया मैं चलती रही तुम अपनी पईयाँ
य़ह ज़िद कि अगले जनम में पा लोगी मुझे
अर्चना इस जनम का ना जाने देगा तेरा सईयां
लेकर मेरा अहसास तुम्हारा प्यार दृढ़ विश्वास
हर सांस में सरगम सी तुम हो मेरी गुईयां.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.