मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

मेरी गुईयां


कहीं कभी संग मेरे कभी बन पतंग लुटेरे

कभी बनकर पुरवैया लगो बिन मांझी नैया

मेरे संग चलती हो और बरबस खिलती हो

धारा के विपरीत चलो खुद बनकर खिवैया



आधुनिक नार हो नयी शक्ति हो आधार हो

स्वाभिमान इतना जुड़ ना पाए तुमसे छैयां

ना जाने होता क्या मुझसे जब मिलती हो

एक कोमल तरंग सी उड़ लेती हो बलैयां



कोकिल स्वर में कहा था जब तुमने मुझसे
मुकर गया था फिर भी न तुम छोड़ी बईयाँ
अपने एहसासों को ना दे सके रिश्ता मिलकर
लड़खड़ा गया मैं चलती रही तुम अपनी पईयाँ


य़ह ज़िद कि अगले जनम में पा लोगी मुझे
अर्चना इस जनम का ना जाने देगा तेरा सईयां
लेकर मेरा अहसास तुम्हारा प्यार दृढ़ विश्वास
हर सांस में सरगम सी तुम हो मेरी गुईयां.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.