एक मेरी सर्जना विकसित अंझुरायी
भावनाएं अति चंचल कृति घबराई
लड़खड़ाहट में टकराहट की ही गूंज
फिर भी न जाने रहती है इतराई
रुक गयी है इसलिए ढह रही वह
भ्रमित लोगों की है थामे अंजुराई
एक टीला गुमसुम ताकता है राह
जीवंतता दमित निष्क्रियता में दुहाई
मनचलों का मनोरंजनीय टीम
मन के हर चलन की ऋतु छाई
कामनाओं की झंकार झूमे नित
सर्जना में निज अर्चना मन भाई।
धीरेन्द्र सिंह