यह नहीं कि दर्द मुझ तक आता नहीं
दर्द की अनुभूतियों का मैं ज्ञाता नहीं
शिव संस्कृति का अनुयायी मन बना
काली के आशीष बिन दिन जाता नहीं
संस्कृति और संस्कार यदि संतुलित हो
सहबद्धता प्रतिबद्धता विजाता नहीं
गरलपान, मधुपान, जलपान आदि कहें
मातृशक्ति के बिना कुछ भाता
नहीं
अनेक
नीलकंठ अचर्चित असाधारण हैं
काली
के रूप में सक्रिय विज्ञाता कहीं
सहन
की शक्ति भी दमन ऊर्जा सजाए
दर्द एक मार्गदर्शी
दर्द यूं बुझाता नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
30.06.2024
16.37