निर्विवाद व्योम व शालीन धरा
बादलों से बड़ा कहां मसखरा
सूर्य की प्रचंड रश्मियां धाएं
दग्ध धरा शालीन अकुलाए
मेघ कामना कृषक आसभरा
बादलों से बड़ा कहां मसखरा
तपन जब स्व का करे शमन
मनन तब तरसे ले बूंद लगन
आसमान बदलियों से हरा-भरा
बादलों से बड़ा कहां मसखरा
वृष्टि सृष्टि की जीवनदायिनी
दृष्टि वृष्टि की भाग्यदायिनी
कर्म बादलों का तो रसभरा
बादलों से बड़ा कहां मसखरा
मेघ काले व्योम में बूंदे सजाए
श्वेत बादल आएं व बरस जाएं
श्वेत-श्याम से सबका नभ भरा
बादलों से बड़ा कहां मसखरा।
धीरेन्द्र सिंह
25.06.2023
19.25