गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

सत्य या क्षद्म

 हे कौन हो तुम

क्यों आ जाती हो

मौन सी गुमसुम

मौनता आ सुनाती हो


हे मौन हो तुम

डूबती बुलबुलाती हो

निपट सन्नाटा डराए

भाव चुलबुलाती हो


हे बुलबुला हो तुम

सतह ठहर टूटती हो

सागर सी गहरी हुंकार

पुनर्नवीनीकरण ढूंढती हो


हे पुनर्नवीकरण हो तुम

नया तलाशती हो

सत्य हो या क्षद्म कहो

क्यों रिश्ते बहलाती हो।


धीरेन्द्र सिंह

08.04.2022

00.12

विलगाव

 जब मन

छोड़ने लगता है

किसी को,

दर्द मिलता है

तब

हर हंसी को;


भागती जाती है

जिंदगी

होते जाते हैं 

कद छोटे,

जीवन गति स्वाभाविक

सागर भरे लोटे;


नहीं आती याद

खिलखिलाहट, बतकही,

कौन बोले पगली

झुंझलाहट झगड़े की बही ;

नहीं कहता मन

पूछें योजना अगली;


हर धार को अधिकार

मन अपने बहे,

चाहे संग नदी चले

या किनारे को गहे,

मोड़ एक मुड़ना

फिर क्या सुने क्या कहे।


धीरेन्द्र सिंह

07.04.2022

13.34