बूंद नहीं पैसे बरस कभी बादल
सपनीली आंखें अभाव के आंचल
छत जिनको भोजन, होता आयोजन
सावन का मौसम, लाए नए प्रयोजन
ध्वनि गूंजे टकराए, पैसा इन सांखल
सपनीली आँखें अभाव के आंचल
गरीबी दोष नहीं मात्र एक व्यवस्था
सावन इनके जीवन, भरे अव्यवस्था
दीन-हीन लगें, कुछ जैसे हों पागल
सपनीली आंखें अभाव के आंचल
इनकी करें बातें, कहलाते वामपंथी
विद्वता अनायास, धारित करे ग्रंथि
जो कह न सकें बातें हों कैसे प्रांजल
सपनीली आंखें अभाव के आँचल।
धीरेन्द्र सिंह
25.07.2024
21.27