साँसों की अलगनी भवनाओं का जोर
अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर
अबाधित सांस है उल्लसित आस है
पास हो हरदम कहे टूटता विश्वास है
निगरानी में ही संपर्क रचा है तौर
अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर
यह चलन, चाल-चरित्र का है हवन
यह बदन, ढाल-कवित्व का है सदन
उभरती हर कामना को है देता ठौर
अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर
प्रौद्योगिक संपर्क के साधन हैं विशाल
एक तरफ आलाप दूसरी तरफ है तान
गान में वर्जनाओं का है सज्जित मौर
अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर
जब चाहे जिसके साथ कदम दर कदम
संग में उमंग किसी को ना हो वहम
मन ना लगे ब्लॉक का है आखिरी कौर
अभिलाषाएं संचित चलन का है दौर।
धीरेन्द्र सिंह
12.10.2023
04.35