कथ्य की नगरी में तथ्य मर्तबान है
झूठ को खरीदिए सजी दुकान है
छल की छुकछुकाहट नहीं है कबाहट
कड़वाहट का अब असंभव निदान है
क्षद्म का बज़्म आकर्षण का केंद्र
प्रवेश मिल जाएगा गर मेहरबान हैं
निजता के हांथों तौल गए कई लोग
धूर्तता का एक अपना संविधान है
भोली सूरत का प्रेम खुदगर्ज सा
फिर भी रहो जुड़े कि कीर्तिमान है
संशय के अंजन से सजी हुई अंखिया
आधीरात को कहें हुआ बिहान है
कब कौन किस कदर लूटे अस्मिता
भावनाओं को छुपाए कब्रिस्तान है।
धीरेन्द्र सिंह
12.05.2023
23.05