बुधवार, 7 दिसंबर 2022

कविता

 वह कभी नहीं चाहती

कविता लिखूं और

कर दूं पोस्ट उसे

बल्कि

उलाहने देते 

सजा देती है

मेरी कविता को

किसी उपयुक्त चित्र

या फोटो से

और 

उस रचना में ढल

बन जाती है

खुद कविता

कद्रदान लोग

करते हैं लाइक 

यह सोचकर कि

एक अच्छी कविता लिखा हूँ।


धीरेन्द्र सिंह

सोमवार, 14 नवंबर 2022

रंगदानी गुजरिया

 जतन कीन्हा अनजानी डगरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


सीमा पर प्रहरी भीतर लहरी

रिश्ता पकड़ हर डोर ठहरी

अजब-गजब लागे नजरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


सिंदूर लगे कपाल का दिव्य भाल

सपूत बन सैनिक मजबूत ढाल

गर्वित मुहल्ला संग नगरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया


ढंग है तरंग है सोच भी पतंग

गांव-गांव गीत और शहर मृदंग

झूमे देश गर्वभरी ले लहरिया

वतन चिन्हा रंगदानी गुजरिया।


धीरेन्द्र सिंह


दुआ

 एक मोटी परत धूल

छंट रही बादलों सी

मन लगा स्वतंत्र हुआ

ना जाने लगी किसकी दुआ


एक कोमल पाश रचनात्मक

पल प्रति पल सृजनात्मक

लेखनीय अर्चना को छुवा

कौन था वह हमनवां


चुन लिया पथ अलग

धूनी नई जगा अलख

कौन किससे अलग हुआ

विश्वास एक गरल हुआ


लग रहा था कैद

पर था दिल मुस्तैद

भूमिका प्रदर्शन मालपुआ

भ्रमित होकर बुर्जुआ।


धीरेन्द्र सिंह


रविवार, 13 नवंबर 2022

चलन

 देह दलन

कैसा चलन


व्यक्ति श्रेष्ठ

आवश्यकता ज्येष्ठ

विवशता लगन

कैसा चलन


प्रदर्शन परिपुष्ट

प्रज्ञा सुप्त

वर्चस्वता सघन

कैसा चलन


शौर्य समाप्त

चाटुकारिता व्याप्त

अवसरवादिता मनन

कैसा चलन


देह परिपूर्णता

स्नेह धूर्तता

प्यार गबन

कैसा चलन।


धीरेन्द्र सिंह


यादें

तिरस्कृत प्यार

जानबूझकर हो

या हो अनजाने में,

यादें उठती

भाप सरीखी उड़ती

घर हो या मयखाने में;


सुंदर हो बाहुपाश

हो समर्पित विश्वास

यादें मिले तराने में,

कौन बहेलिया 

बहलाए सांस

बदले निजी जमाने में;


अनुगामी यादें

टूटे ना वह नाते

त्यजन गरमाने में,

वशीकरण वशीभूत

भावनाओं का द्युत

जीवन को भरमाने में;


दूरी कैसी

लिप्सा मजबूरी जैसी

चाहतें हर जाने में,

जानेवाले जाएं कहां

यादों से रहे नहा

युग्मित गुसलखाने में।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

अमौ हाजी

 अमौ हाजी

ज़िंदगी से बाजी

सत्तर वर्ष न नहाया

फिर भी मारी बाजी


अमौ हाजी


कैसे जिया कैसे पिया

लोग न थे राजी

रहा भय से लिपटा

फिर भी मारी बाजी


अमौ हाजी


अंग्रेजी का कठिन शब्द

अब्लूफोटोबिया हिंदी निःशब्द

हिंदी शब्द खाए कलाबाजी

फिर भी मारी बाजी


अमौ हाजी


हिंदी में तुमको लिखा

विज्ञान को गए सिखा

समझ न पाया धुनबाजी

फिर भी मारी बाजी।


धीरेन्द्र सिंह

(अमौ हाजी विश्व का सबसे गंदा व्यक्ति जो 70 वर्ष तक नहीं नहाया क्योंकि वह नहाने से डरता था। काफी दबाव पर जब वह नहाया तो बीमार पड़ गया और 92 वर्ष में मर गया)

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

विकल्प

 विकल्प


विकल्प होना

संभव है संकल्प में

संकल्प होना

संभव कहां अल्प में,

स्थिर मन होता है संकल्पित

या विकल्पित

अपने संस्कार अनुसार

मन का खोले द्वार,

विकल्प तलाशता है

बुनता ताना-बाना

परिचित से हो अपरिचित

अनजाने को कहे पहचाना,

संकल्प और विकल्प

जीवन के दो धार

संकल्प से हो उन्नयन

विकल्प ध्वनि बस "यार"।


धीरेन्द्र सिंह


चखे फल

 कौओं, कबूतरों, गिद्धों के

चखे फल को

अर्चना में सम्मिलित करना

एक आक्रमण का

होता है समर्थन,

श्रद्धा चाहती है

पूर्णता संग निर्मलता,

चोंच धंसे फल

सिर्फ जूठे ही नहीं होते

बल्कि

किए होते हैं संग्रहित

चोंच के प्रहारों की अनुभूति

समेटे मन के डैने में,

आस्थाएं

नहीं टिकती

जूठन व्यवहार पर

क्या करे पुजारी

मंदिर के द्वार पर।


धीरेन्द्र सिंह


सोमवार, 17 अक्टूबर 2022

"मेरा ही बनाया हवन कुंड'


हवन कुंड जलाकर

उसका रचयिता

प्रत्येक आहुति में

किए जा रहा है

अर्पित अपने गुनाह

अर्जित करता शक्ति

ईश्वर से


हवन कुंड का रचयिता

हो सम्माननीय

हमेशा आवश्यक नहीं,

धर्म की आड़ में

शिकार की ताड़

और नए शिकार से प्यार

भीतर से,


हवन कुंड का रचयिता

करता है ब्लॉक

जब पाता है नया शिकार

एक चाहत की प्यास

कहता है 

"मेरा ही बनाया हवन कुंड'

आहुति दे


भोलापन और मासूमियत

भीतर बदनीयत

स्वार्थ की हुंकार

प्यासे तन-मन की झंकार

एक पकड़े दूजा छोड़े

नातों से नव नाता जोड़े

आदमी दे।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

करवा चौथ

करवा चौथ

सागर तट पर
भींगे रेत पर
बह जाते हैं निशान
कदमों के,
नहीं बहती यादें
वक़्त झंझावात में,

बढ़ते हैं कदम
प्रकृति की ओर बरबस
अस्तित्व नारी का पाकर
और छोड़ जाते हैं
निशां अपने कदमों का,
आंधियां नहीं उड़ाती
कदमों के निशान,
हवा संग लुढ़कते पुष्प
उड़ती पंखुड़ियां
ठहर जाती हैं कदमों पर,
प्रकृति मना लेती है
करवा चौथ।

धीरेन्द्र सिंह
13.10.2022
12.10

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

अंतरंग

 आपकी गतिशीलता गति करे प्रदान

आपकी प्रगतिशीलता निर्मित करे अभिमान

आप साथी आप संगी आप ही अंतरंग हैं

आप ही गोधूलि मेरी आप ही तो बिहान


आप से निबद्ध हूं निमग्न आप में प्रिए

आप की सहनशीलता में घुला सम्मान

आप मेरे आलोचक, समीक्षक हैं शिक्षक

आपकी कुशलता संजोए संचलन कमान


हृदय ही सर्वस्व है वर्चस्व उसका ही रहे

हृदय की आलोड़ना में प्रीत का बसे गुमान

कौन उलझे सांसारिक रिश्तों की क्रम ताली में

हृदय जिसे अपनाएं प्रियतम उससे ही जहान


मानव निहित अति शक्तियां अप्रयोज्य पड़ीं

इन शक्तियों में सम्मिलित कई नव वितान

भाग्य ही भवसागर है कर्म की कई कश्तियां

कौन किसका कब बने इसका न अनुमान।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 10 सितंबर 2022

मन अधीर है

 शब्दों की गगरी में भावों के खीर हैं

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है


एक अधर खीर का स्वाद बेजोड़ है

मन में बसा उसका होता न तोड़ है

चाहतें चटखती चढ़ रही प्राचीर हैं

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है


दुनिया का जमघट अपना पनघट है

प्रीत की बयार मदहोशी तेरी लट है

जमाने के तरीकों में अपनी लकीर है

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है


शब्द गगरियों की आपसी टकराहट

खीर भी मिल दिखलाती घबराहट

भावनाएं दूर कहीं अनजानी तीर हैं

ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 24 अगस्त 2022

पपड़ियां


पर्वतों के पत्थरों पर पड़ गयी पपड़ियां

एक मुद्दत से यहां कोई हवा न बही

व्योम में सूर्य की तपिश थी धरती फाड़

चांदनी पूर्णिमा में भी ना नभ में रही


क्या प्रकृति में भी होता षड्यंत्र कहीं

अर्चनाएं जीवन की पहाड़ी नदी बही

किस कदर जी लेती है इंसानियत भी

कल्पनाओं में चाह स्वप्न बुनती रही


अब न ढूंढो हरीतिमा पर्वत शिखरों पर

कामनाएं प्रकृति अवलम्बित उल्टी बही

एक हवा बन बवंडर सी चल रही है यहां

मगरूरियत विश्वास में राग वही धुनती रही।


धीरेन्द्र सिंह


सन्नाटा

 सन्नाटे में नई रोशनी जग रही

उठिए न देखिए सांखल बज रही


मत सोचिए हवा की है मस्तियाँ

शायद कहीं करीब हो बस्तियां

एकाकी आत्मिक सुंदरता सज रही

उठिए न देखिए सांखल बज रही


हृदय का हृदय से हार्दिक मिलान है

दो हृदय नाम वैसे तो एक जान हैं

जीवन झंझावात में त्रुटियां लरज रहीं

उठिए न देखिए सांखल बज रही।


धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 10 अगस्त 2022

हिंदी

शब्द की टहनियों में प्यास है भाव की वृष्टि भी उदास है बिखर रही है यह जुगलन्दी लिखिए आपके जो पास है चंद नामों से बचिए हैं मशहूर चिंतन आपका भी खास है स्वतंत्र लिख देना है बड़ी बात कई प्रभावों में बंधे हाँथ है लिख रहे छप रहे, जप रहे एक परिवर्तन हिंदी तलाश है क्रांति हिंदी जगत में अपेक्षित करें प्रकाशित स्व, हिंदी हताश है। धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 3 अगस्त 2022

उड़ गई गौरैया

न खोने का दर्द न पाने की खुशियां वह दर्द में न हो बंद है अभी बतियां उड़ गई गौरैया या जाल की दुनिया पीड़ा में ना रहे अभी सखा न सखियां संवादहीनता का न भय संवाद हो उसके दरमियाँ दंभी है कोमल मनवाली ढूंढे उसे सुर्खियां। धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 24 मई 2022

अपहरण

कब चले थे, राह भी है भ्रमित पांवों को दूरी का भी नहीं पता कब निर्मित ही गयी यह दूरियां वक़्त कहता समय से अब तो बता प्रकति यह सम्पूर्ण है डगमगाती कोई दिन मेहनत किसी को रतजगा सब सुरक्षित पर असुरक्षित रहें हर समय प्रहरी जीवन डगमगा सत्य को तो भेदिए ले तर्क नए भाव वंचित, खंडित तथ्य सुगबुगा हरण भी अपहरण भी कब हो गया और बंधन बढ़ रहे क्यों बुन बुना। धीरेन्द्र सिंह

नदिया

कितनी मंथर चल रही नदिया भावनाएं तैर कर तट छू गयी यह प्रकृति है या नियति डगर चलन है अंदाज लट खो गयी तेज नदिया थी तो लट भी था लहरें केश संवारते घट चू गयी अब कहाँ श्रृंगार नदिया निपट खो कर मंजिल ललक सो गई और तट पर कंकड़ों से खेल डुप ध्वनि कंकड़िया भू भई झकोरों में तपिश कशिश नहीं नदिया है सामने हवा लू भई। धीरेन्द्र सिंह

आघात

ना आदर का ही है भूखा कहे बस सत्य लगे रूखा एक आघात ही निर्माण है सजगता तो बस एकमुखा क्यों चर्चा हो कहीं अक्सर क्यों बातें दे अक्सर झुका अपनी जिंदगी जी लीजिए समय से है तिमिर बुझा बस राह थी उपवन भरी कदमों में खुश्बू को लुका मढ़ लिए थे गगन हृदय में यामिनी मन गहि ढुका । धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 12 मई 2022

पर्देदारी

 सत्य सजल नयन उपवन

भावों की अविरल शीतलता

हर सृष्टि रचे अपनी धुन में

जग अपनी रचे लखि नीरवता


शब्दों का क्षद्म उपयोग नहीं

संवाद प्रवाहित निर्मल सरिता

हर लहर फहर दिल तक धाए

अनकहे प्रवाहित सबल धरिता


पट खोल लिए रचि पर्देदारी

कुछ दरद चटक निज करिता

यह भी एक संवाद सुफल जग

एक भाव लिए जीवन चरिता।


धीरेन्द्र सिंह


बुधवार, 11 मई 2022

ढह रही वह

 एक मेरी सर्जना विकसित अंझुरायी

भावनाएं अति चंचल कृति घबराई

लड़खड़ाहट में टकराहट की ही गूंज

फिर भी न जाने रहती है इतराई


रुक गयी है इसलिए ढह रही वह

भ्रमित लोगों की है थामे अंजुराई

एक टीला गुमसुम ताकता है राह

जीवंतता दमित निष्क्रियता में दुहाई


मनचलों का मनोरंजनीय टीम 

मन के हर चलन की ऋतु छाई

कामनाओं की झंकार झूमे नित

सर्जना में निज अर्चना मन भाई।


धीरेन्द्र सिंह


सोमवार, 11 अप्रैल 2022

अजान और चालीसा

 धर्म वर्चस्वता स्वाभाविक

अर्चनाएं भी जरूरी

अजान की गूंज पाक

हनुमान चालीसा ना मजबूरी,


सौम्य और शांत धर्म

कोलाहल भूने जैसे तंदूरी

लाउडस्पीकर मस्जिद में ऊंचा

रामबाण भी तो प्रथा सिंदूरी


माला सब जपें तो पुकार क्यों

धर्म निजता ना जी हुजूरी

धर्म नव व्यवस्थाएं मांगे

कामनाएं सबकी हों अवश्य पूरी।


धीरेन्द्र सिंह

12.04.2022

08.42

रविवार, 10 अप्रैल 2022

शक्ति साध्य

 राष्ट्र ना हो कभी धृतराष्ट्र

राग अपना जो संवारिए

झोंके न बहा लें लुभावने

धार संस्कृति की निखारिए


वैभव, पद, यौन के खुमार

धर्म राह से इनको गुजारिए

सबके वश का नहीं ये प्यार

दृष्टि सृष्टि संग जी संवारिए


ऐसे प्रवचनों की बहती बहार

कर्महीन, तर्कदीन को बुहारिए

शौर्य, शक्ति, पराक्रम ही सत्य

शक्ति ही साध्य इन्हें संवारिए।


धीरेन्द्र सिंह

11.04.2022

10.18

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

रामनवमी

 

प्रज्जवलित प्रखर, परिपूर्ण धर्म की नमी

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी

 

राजगद्दी त्यजन, वचन निभाव की मर्यादा

वनगमन वामन मिलें, युद्ध कर्म ही ज्यादा

गलत ना स्वीकार्य ना हो निर्मित गलतफहमी

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी

 

संयोजन, समंजन, शौर्य बने दुखभंजक

शिव पूजन तो आदि शक्ति सृष्टि व्यंजक

रघुकुल रीति सकल जग की भव्य धरमी

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी

 

वर्तमान भारत देश रचे फिर सनातनी वेश

विश्व उत्सुक हो निरखे प्रगति भारत विशेष

सौम्य, शांत, सरल, सहज, शौर्य भरी सरजमीं

प्रचंड पारदर्शी, महत्वपूर्ण कर्म रामनवमी।

 

धीरेन्द्र सिंह

10.04.2022

08.22

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

सत्य या क्षद्म

 हे कौन हो तुम

क्यों आ जाती हो

मौन सी गुमसुम

मौनता आ सुनाती हो


हे मौन हो तुम

डूबती बुलबुलाती हो

निपट सन्नाटा डराए

भाव चुलबुलाती हो


हे बुलबुला हो तुम

सतह ठहर टूटती हो

सागर सी गहरी हुंकार

पुनर्नवीनीकरण ढूंढती हो


हे पुनर्नवीकरण हो तुम

नया तलाशती हो

सत्य हो या क्षद्म कहो

क्यों रिश्ते बहलाती हो।


धीरेन्द्र सिंह

08.04.2022

00.12

विलगाव

 जब मन

छोड़ने लगता है

किसी को,

दर्द मिलता है

तब

हर हंसी को;


भागती जाती है

जिंदगी

होते जाते हैं 

कद छोटे,

जीवन गति स्वाभाविक

सागर भरे लोटे;


नहीं आती याद

खिलखिलाहट, बतकही,

कौन बोले पगली

झुंझलाहट झगड़े की बही ;

नहीं कहता मन

पूछें योजना अगली;


हर धार को अधिकार

मन अपने बहे,

चाहे संग नदी चले

या किनारे को गहे,

मोड़ एक मुड़ना

फिर क्या सुने क्या कहे।


धीरेन्द्र सिंह

07.04.2022

13.34

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

शब्द

 सुनो प्रयास तज्ञ शब्द संचयन

समेट पाओ क्या स्मिति नयन

उठाए भार अभिव्यक्ति गमन

रंग पाओगे मुझ जैसे प्रीत चमन


मेरा सर्वस्व ही मेरा निजत्व है

शब्द कहो कहां तुम्हारा है वतन

मेरी अनुभूतियां परिकल्पनाएं 

शब्द कर पाओगे हूबहू जतन


आत्मा मेरी जुड़े आत्मा उसकी 

धरा की कोशिशें ठगा सा गगन

बहुत बौने, बहुत अधूरे हो शब्द

मेरी आत्मा मेरी आराधना, नमन।


धीरेन्द्र सिंह

06.04.2022

16.08

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

जैसे कश्मीर

 जब टूटा सब टूटा और टूटा धीर

अब लगता षडयंत्र जैसे कश्मीर


मां दुर्गा की प्रेरणा अबकी पुकार

नवरात्र में चिंतन-मनन में सुधार

भंवर भरोसे क्या बहें देखें तीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


इतिहास पढ़ने से क्या प्राप्ति रही

धारा ठीक चली कब उल्टी बही

कलम बिक गयी सोच टूटी प्राचीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


पीढ़ी दर पीढ़ी चढ़ती गलत सीढ़ी

रहा सुलगता सत्य रहा जैसे बीड़ी

वर्तमान प्रांजल हो बन रहा अधीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


अपना सत्य सौम्यता ठहरी है पीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर।


धीरेन्द्र सिंह

02.04.2022

13.35

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

जीवन की थाह

 डबडबा जाती हैं आंखें

क्या कहूँ, कैसे कहूँ

बस लगे मैं बहूँ;

एक प्रवाह है

बेपरवाह है

जीवन की थाह है;

बस हुई मन की बातें

डबडबा जाती हैं आंखें।


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2022

अपराह्न 01.40

गुरुवार, 24 मार्च 2022

अस्तित्व

 अखबार सी जिंदगी

खबरों सा व्यक्तित्व

क्या यही अस्तित्व ?


लोग पढ़ें चाव से

नहीं मौलिक कृतित्व

क्या यही अस्तित्व ?


संकलित प्रभाव से

उपलब्धि हो सतीत्व

क्या यही अस्तित्व ?


प्रलोभन मीठी बातें

फिर यादों का कवित्व

क्या यही अस्तित्व ?


तिलांजलि असंभव है

तिलमिलाहट भी निजित्व

क्या यही अस्तित्व ?


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2022

पूर्वाह्न 08.00

बंजरता

 बरसते नभ से धरा विमुख
प्रांजलता वनस्पतियों में भरी
मेघ के निर्णय हुए नियति
प्रकृति भी है खरी-खरी

टहनियों पर मुस्कराते पुष्प हैं
पत्तियां झूम रहीं, हरि की हरी
उपवन सुगंध में उनकी ही धूम
भ्रमर अकुलाए कहां है रसभरी

पहले सा कुछ भी नहीं अब
बंजरता व्यग्र, कहां वह नमी
नभ का दम्भ या धीर धरा
विश्व की पूर्णता है लिए कमी।

धीरेन्द्र सिंह
24.03.2022
17.15

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

युद्ध

 यूक्रेन 

हिम्मत और हौसला

रूस

आधिपत्य का फैसला,


याद आया महाभरत

युद्ध कौशल की महारत

रणनीतियों का जलजला

यह विश्व कहां चला,


प्रखर वही व्यक्तित्व

है जिसका शीर्ष अस्तित्व

दूरदर्शी ना मनचला

रूस विश्व की कला,


वसुधैव कुटुम्बकम

विस्तारवाद का कदम

पढ़ाने की चतुर कला

भारत का हो भला,


बदल रही परिस्थितियां

अधूरा इतिहास दरमियाँ

कितना बहा और लगे गला

त्यजन, काल को गले लगा,


यूक्रेन

युद्ध कौशल आयातित

रूस

भारत भी सोचे कदाचित।


धीरेन्द्र सिंह

23.02.2022

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

दरमियाँ

 आह! प्रणय

ओह! प्रणय

भावनाओं की नर्मियाँ

दो दिलों के दरमियाँ;


मन के गुंथन

चाहत हो सघन

कैसी यह खुदगर्जियाँ

दो दिलों के दरमियाँ


कह रही धड़कनें

बढ़ रही तड़पनें

मिलन की सरगर्मियां

दो दिलों के दरमियाँ


व्यर्थ है प्रतिरोध

सजग है निरोध

सुसज्जित हैं अर्जियां

दो दिलों के दरमियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

लता मंगेशकर - श्रद्धांजलि

 लता मंगेशकर - सुर देवी - श्रद्धांजलि


संगीत की आत्मा

चल गई जग छोड़

श्रद्धांजलि पूछे यह

क्या इसका है तोड़


युग है भरा-पुरा

सुरों का मशवरा

स्वर यह बेजोड़

क्या इसका है तोड़


सुरों की आराधना

गीत छाया घना-घना

सरगमों का आलोड़

क्या इसका है तोड़


साधिका का गमन

सरगमें संकलित सघन

कहें गयी क्यों मुहं मोड़

क्या इसका है तोड़।


धीरेन्द्र सिंह

पूर्वाह्न 10.55


मंगलवार, 18 जनवरी 2022

दालान

 अहसान के दालान में

गौरैया का खोता है,

जेठ की धूप खिली

मन सावन का गोता है;


खपरैले छत छाई लतिकाएं

पदचिन्ह दालान भरमाएं

दृष्टि कहे बड़ा वह छोटा है

सूना पड़ा गौरैया खोता है;


फिर वही पाद त्राण अव्यवस्थित

कौन है व्यक्तित्व फिर उपस्थित

मन के हल से नांध तर्क जोता है

झूम रहा क्यों आज खोता है।

धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

मकर संक्रांति

 धर्म जब कर्म के करीब हो

जीवन की मिटे सब भ्रांति

ऑनलाइन उत्सव मनाएं यूं

मन से हो मन मकर सक्रांति


लोहड़ी भी संग लिए पोंगल

तीन अलग नाम लिए विश्रांति

फसलों से आसमान गूंज उठे

मन से हो मन मकर संक्रांति


शीत ढले ऊष्मा बढ़े ले उल्लास

ऐसी ही होती सब धार्मिक क्रांति

आपकी उमंग में उड़ती पतंग हो

मन से हो मन मकर संक्रांति।

धीरेन्द्र सिंह