शनिवार, 30 दिसंबर 2023

सिरहाने

 

मैंने तुमको बांध लिया सिरहाने से

जीवन उत्सव होता संग फहराने से

 

क्या घटता क्या बंटता समय आधीन

क्या बचता कब फंसता कर्म आधीन

पनघट रहे छलक भाव संग इतराने से

जीवन उत्सव होता संग फहराने से

 

कब बह जाओ संग समय किलकारी

कहीं रिक्तता रच कहीं नई चित्रकारी

स्वार्थ, भय लिया लपेट सिरहाने से

जीवन उत्सव होता संग फहराने से।

 


धीरेन्द्र सिंह

30.12.2023

13.17

मोहब्बत

 एहसासों के गुलाबी तहमत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत


छुवन में हो भावनाएं

अनंत राह की कामनाएं

जिस्म-जिस्म भी जहमत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत


व्यक्तिव ना दर्शनीय अस्तित्व

अस्तित्ब तो होता परिवर्तनीय

ठोस पहचान भी रहमत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत


बहुत हो दूर, मगरूर

चाह का नूर, दस्तूर

बहुत दूर से निस्बत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत।


धीरेन्द्र सिंह


30.12.2023

12.41

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

जिद

 

संवर जाने की जिद नयन जो किए

बदन तब महक चमन हो गया

पलकों की चांदनी छा गयी इस तरह

लगन अलमस्त दहन हो गया

 

मन की बारीकियां होंठ पर छा गयीं

भाव तत्परता से सघन हो गया

ढाँप कर कहन के वह कदम

फिर वही खूबसूरत वहम हो गया

 

देह की दिव्यता में नव अभिव्यक्तियां

आसक्तियों से बदन का नमन हो गया

मन व्याकुल बेचैन होने लगा

कैसे नयनों से भावों का गबन हो गया।

 


धीरेन्द्र सिंह

30.12.2023

02.54

असर कर गए

 इस तरह मन मेरे वह ग़दर कर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


युद्ध भावों का लंबे समय से है जारी

युक्ति, छल, कपट की उनकी तैयारी

मुझे चक्रव्यूह के नजर कर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


ना कृष्ण जैसे के हाथों में वल्गाएँ

ना अर्जुन सी धनुर्विद्या कामनाएं

निपट अकेला कर डगर धर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


युद्ध अनिवार्यता, है जीवन समाहित

स्वार्थ सर्वोच्च, लाभ का जिसमें हित

कौशल युद्ध जो सीखा बब्बर हो गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


कैसे कह दूं है उनकी कोई यह चाल

लाभ व्यक्तिगत हेतु बनाया मुझे ढाल

चाहतों में फंस वह बसर कर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए।



धीरेन्द्र सिंह

29.12.2023

15.59

बुधवार, 27 दिसंबर 2023

गुजरिया

 भाग्य के भंवर में प्यार की नगरिया

मोहें पाश बांध ले राह की गुजरिया


दिल दिलदार यह हो रहा है असरदार 

मिल एक ठाँह भाव युग्म हो रसधार

कहीं छांव बैठ बचाकर जग नजरिया

मोहें पाश बांध ले राह की गुजरिया


भावकलश में गंगाजल की हैं हिलोरें

अर्चना की प्रीत में संग गीत डुबो रे

पावनी अनुभूतियों संग चाह की बदरिया

मोहें पाश बांध ले राह की गुजरिया


परिचय अपरिचय संपर्क से होते तय

भावनाएं मिल गईं तो प्यार हो निर्भय

प्रणय की फुहार में श्रृंगार की रसबतिया

मोहें पाश बांध लें राह की गुजरिया।


धीरेन्द्र सिंह

27.12.20२3


09.16

पुणे

मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

मिलती हो

 तुम मुझे हवा की नमी में कहीं मिलती हो

तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो


एक धर्म जिसका एक सा कर्म लिए प्रसार

एक लक्ष्य सबका एक सा प्यार लिए संसार

भाव मिलन के अनंत वितान में उड़ती हो

तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो


मंद हवा शीतलता भरकर गली- गली में दौड़े

आनंद छुवा कृत्रिमता हरकर हिली-मिली कोड़े

परिवेश पहनकर मौसम बन उन्मुक्त विचरित हो

तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो


जब छूना छू लेती हो धरा गगन के रूप

मन अंधियारा जब छाए याद तुम्हारी धूप

कुनकुनी ऊष्मा उल्लसित छत द्वार सजती हो

तब कहीं फूल सी हृदय खिली मिलती हो।


धीरेन्द्र सिंह

26.12.2023


गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

मुक्ति

 गज़ब है गवैया अजब है खेवैया

समझे तो मुक्ति वरना मैया-मैया


एक देता सुर का अपना ही तान

संगीतज्ञ उलझे सुन यह कैसा ज्ञान

करें साजिंदे मिल ता, ता थैया

समझे तो मुक्ति वरना मैया-मैया


सुर को कतर दें संगीत का ज्ञान

आरोह-अवरोह में मद्धम का मिलान

अनगढ़ सुर ले ढूंढते कुशल गवैया

समझे तो मुक्ति वरना मैया-मैया


कम्प्यूटर में सम्मिलित सुर भंडार है

गुरु ज्ञान बिन सुर में लगे डकार है

सुनना हो सुनो नहीं और बहन-भैया


समझे तो मुक्ति वरना मैया-मैया।


धीरेन्द्र सिंह

21.12.2023

14.10

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

एक कहानी

 महकते-चहकते यूं बन एक कहानी

करे कोई याद तो बड़ी मेहरबानी


किया क्या है जीवन को दे, सदा

अपने ही पूछें किया क्या है, बता

यह गलती नहीं पीढ़ी फर्क कारस्तानी

करे कोई याद तो बड़ी मेहरबानी


सृजन क्या जतन क्या सहन क्या

यह सब जीवन संग है, नया क्या

भावों को कुचल करते प्रश्न तर्कज्ञानी

करे कोई याद तो बड़ी मेहरबानी


धन-संपदा न अभाव, कहता छांव

रुपयों से कब सजा, मन बसा गांव

अपने हो संग महकाए जिंदगानी

करे कोई याद तो बड़ी मेहरबानी


सौभाग्य है जो रहते, अपनों के साथ

बारहवीं मंजिल की वृद्धा, अपने हाथ

एक रात आते बच्चे लुटाने ऋतु सुहानी

करे कोई याद तो बड़ी मेहरबानी।


धीरेन्द्र सिंह


19.12.2023

08.22

चूनर-ओढ़नी

 कोई गौर से पलक चूनर ओढ़ाके

हक अपना जताकर फलक कर दिए

हकबकाहट में दिल समझ ना सका

भाव उनका कहे संग चल दे प्रिए


सांझ चूनर ढली हम भी देखा किए

चुंदरिया सौगात में मिली किसलिए

एक आलोक फैला दी चुनर वहीं

ना चाहते हुए भी हम हंस दिए


कब जगता है रमता है ऐसा प्यार

एक द्वार खोल हलचल कर दिए

उसकी उम्मीद बीच जिंदगी जो पुकारी

पहन चूनर पर ओढ़नी संग चल दिए


आज भी है लहरती चूनर जज्बात में

ओढ़नी से चुपके ढंक चुप कर दिए


कौन जाने किस हालात में वह कहीं

दीप चूनर के हम प्रज्ज्वलित कर दिए।


धीरेन्द्र सिंह

18.12.2023

रविवार, 17 दिसंबर 2023

लहक चू गयी

 पहुंचा जब गले तक, महक छू गयी

लगा महुआ है टपका, लहक चू गयी


देह के धामों में ऋचाएं हैं अनगिनत

मातृत्व से प्रेयसी तक सब हैं नियत

पढ़ना चाहा कुछ गुह्य कुछ धू हो गयी

लगा महुआ है टपका लहक चू गयी


कलश देह में जल जीवन है सम्हाले

प्यार के भी होते हैं जलपान निवाले

बूंदों की कामना में ललक भू भयी

लगा महुआ है टपका लहक चू गयी


अंतर्चेतना का ज्ञान सजग मान है नारी

यह ज्ञान सभी को पर निभाव में दुश्वारी

सहज समर्पण किया तो त्वरित तू भई

लगा महुआ है टपका लहक चू गयी।


धीरेन्द्र सिंह


17.12.2023

13.25

शनिवार, 16 दिसंबर 2023

ऐ हवा

 मैं हूँ गगन का ठहरा एक बादल

सुना ऐ हवा एक धुन मस्तानी


तपिश प्यार का जल, शोषित किया

हवा संग तुझसे है, पोषित किया

अपनी यही एक जीवन कहानी

सुना ऐ हवा एक धुन मस्तानी


प्रणय हो गया अनपेक्षित, अकस्मात

प्रलय झूम आया, प्रणय दे आघात

थी मेरी खता या उसकी कारस्तानी

सुना ऐ हवा एक धुन मस्तानी


था शोषित प्रणय पर भरा व्योम था

बादलों का जमघट बड़ा सौम्य था

धरा खींच ली बना उनको पानी

सुना ऐ हवा एक धुन मस्तानी


प्रणय ना है छूटा रहे जग रूठा

हृदय गीत मगन स्पंदन अनूठा

हवा चल करें शुरू नव जिंदगानी

सुना ऐ हवा एक धुन मस्तानी।


धीरेन्द्र सिंह


17.12.2023

07.16


ग़ज़ल कर गयी

 

मुझे तुम सबल से सजल कर गयी

सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी

 

कहा कब यह मन हो तुम गगन

कहा कब यह जन हो तुम सपन

सघन हो लगन अब तरल कर Each

सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी

 

स्पंदित सुरभित कुसुमित प्रचुर भाव

वंदित तरंगित दृगबन्दी सकल निभाव

मंदित मंथर मंतर सफल कर गयी

सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी

 

मुखड़ा संवरकर दे रहा नया प्रलोभन

मिसरा पिघलकर दे रहा नया संबोधन

अनुभूतियां सपन भर महल कर गयी

सुनी जो नई वह ग़ज़ल कर गयी।

 

धीरेन्द्र सिंह


16.12.2023

16.45

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

व्यथा कथा

 

प्रीति अधर अकुलाए, रह-रह बुलाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

उसकी बातें मन के छाते छांव दिए

उसकी बाहें तन को बांधे भाव दिए

घर से घर कर बातें, तर-तर बिहाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

कल के प्रियतम सजन मगन मधुर

बोले सास, ननद का स्वभाव निठुर

केशों को सहलाते बोले, गहि-गहि कुम्हलाएं

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

सास-ननद का ताना बाना रोज निभाना

टूटे ना परिवार, नारी सब सहते जाना

सैयां से क्या बोले अब, ठहि-ठहि बताए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

प्यार सजन का हो गया जैसे सूखा फूल

बात-बात में मिले नए झगड़े का तूल

मर्यादा में सहनशक्ति, बार-बार झुकाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

साजन अब ऐसे लगें जैसे हों छाजन

पैंतालीस बरस है बीता इस घर-आंगन

सहते रहना गलत, मन कह-कह मुस्काए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए

 

प्रेमी, सजन फिर छाजन प्यार का जतन

घर-आंगन सब लोग में रही हमेशा मगन

मिला अंत में क्या जीवन, सहि-सहि गंवाए

प्रेम पेंग में अधमरी, बह-बह बौराए।

 

धीरेन्द्र सिंह


15.12.2023

10.07

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

कलर स्मोक

 गुजर गए द्वार से सुरक्षा ने ना छुवा

जूता से कलर स्मोक से हो गया धुवाँ


दो बाहर को किए धुवाँ दो संसद में

सांसदों ने पकड़ा जोश मिले भय में

दर्शक दीर्घा से कूदे जैसे हो कोई कुवां

जूता से कलर स्मोक से हो गया धुवाँ


संसद है संविधान प्रहरी प्रजातंत्र का

दर्शक दीर्घा मिला अधिकार है प्रजा का

प्रजा के चार लोगों ने इस मंदिर को छुवा

जूता से कलर स्मोक से हो गया धुवाँ


अपनों से भी खतरा कहे माटी घबड़ा

स्वार्थ, भ्रमित होकर जाते कहीं टकरा

संसद आक्रमण बरसी को दिए गूंजा

जूता से कलर स्मोक से हो गया धुवाँ


अपने ही घर में और कितनी सुरक्षा

अपने ही भ्रमित होकर भूलें सदीक्षा

अपनों में असभ्यता का पनपे क्यों सुवा

जूता से कलर स्मोक से हो गया धुवाँ।


धीरेन्द्र सिंह

13.12.2023


15.56


मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

किसान

 माघ सीवान में कटकटाए रतिया

रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां


खड़ी फसल देख नय-नय मुस्काएं

सरर-सरर हवा देह को लहकाएं

ओस-ओस ओढ़ कांपे हैं पतियां

रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां



चंदा सितारे निस संगी मनद्वारे

किसानी का लहजा मचान संवारे 

लालटेन सी गरमाहट बसे छतिया

रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां


खेत हुई हलचल सियार हैं पधारे

खट-खट लाठी हौ-हौ चिंघाड़े

जैसे पुकारे हिय तड़पत छतिया

रजाई ढुकाय हड़बड़ाए तोरी बतियां।


धीरेन्द्र सिंह

12.12.2023

21.27

सोमवार, 11 दिसंबर 2023

गई कहां

 मन के भाव, मारे बूझबूझ कलइयां

मन अकुलाए कहे, गयी कहां गुइयाँ


भव्यता की भीड़ में आलीशान नीड़ है

सभ्यता के रीढ़ में बेईमान पीर है

भावनाएं सौम्यता से ले रही बलैयां

मन अकुलाए कहे, गयी कहां गुइयाँ


कोई न पहचान पाए मन की व्यथा

जो भी मिले कह सुनाए अपनी कथा

जीवन में जीवन की अनगढ़ गवैया

मन अकुलाए कहे, गयी कहां गुइयाँ


एक लक्ष्य, एक सत्य, कहां एकात्मकता

विकल्प उपलब्ध कई उनसे सकारात्मकता

समर्पण स्थायी, यौवन में कहां भईया

मन अकुलाए कहे, गयी कहां गुइयाँ


सत्य की प्रतीति है फिर भी मन मीत है

आजकल के प्यार की यही जग रीत है

पकड़-छोड़ फिर पकड़ खेलम खेलइया

मन अकुलाए कहे, गयी कहां गुइयाँ।



धीरेन्द्र सिंह

12.12.2023

09.23

रविवार, 10 दिसंबर 2023

प्रीत बहुरागी

 रचित है रमित है राग अनुरागी

कथित है जनित है प्रीत बहुरागी


व्यंजना में भावों की कई युक्तियां

कामनाओं की नित कई नियुक्तियां

पहल प्रयास निस असफल प्रतिभागी

कथित है जनित है प्रीत बहुरागी


तुम तो महज मनछाँव सहज हो

व्यथित हृदय पूछे अब कहाँ हो

वो पहलभरे दिन चाह दिलरागी

कथित है जनित है प्रीत बहुरागी


सांत्वना के बोल कहते मत बोल

विवशता या मजबूरी जेहन में तोल

कुछ ना असहज दृष्टि ही सुरागी

कथित है जनित है प्रीत बहुरागी।



धीरेन्द्र सिंह

10.12.2023

21.29

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

भावों की क्यारी

 कितने नयन निकस गए कसने की बारी में 

मिली तुम बहुत देर से भावों की क्यारी में


कहे समाज दृष्टि ब्याहता, यह पारिवारिक

कदम बढ़ गए पक क्या यह है सुविचारित

व्यक्ति-व्यक्ति मृदु परिचय,वक़्त अँकवारी में

मिली तुम बहुत देर से भावों की क्यारी में


सहज कृत्य है या असहज, विश्व नासमझ

धार्मिक तागे से महज, यह कृत्य उलझ

क्या जाने द्वय सुलझन को दिल बारी@ में

मिली तुम बहुत देर से भावों की क्यारी में


विवाहेत्तर संबंध,उफ्फ अनर्गल यह लेखन

ब्याहता एकलक्षी बस घर, चौका, बेलन

अंतर्राष्ट्रीय नारी दिवस भी मन फुलवारी मैं 

मिली तुम बहुत देर से भावों की क्यारी में


क्या कहिए जब चेतना प्यार माने, देह भोग

उच्च प्यार प्रणेता तन्मय आत्मिक संभोग

खुले शब्द का लेखन, मानसिक बीमारी में

मिली तुम बहुत देर से भावों की क्यारी में


ईश्वर भक्त का भाव, गहन हो सोचिए

ऊपर जो लिखा, तब क्या उसे नोचिये

मंदिर वास्तु,धर्म पुस्तकें कल्पना गलियारी में

मिली तुम बहुत देर से भावों की क्यारी में।


धीरेन्द्र सिंह


07.12.2023

19.22


बुधवार, 6 दिसंबर 2023

चेतना

 चेतना में जड़ता या जड़ता में चेतना

दृष्टि का कार्य यही इनको है भेदना


विश्व में निर्माण या निर्माण से निर्वाण

ज्ञानियों की बातों में दिखते कई प्रमाण

विश्लेषण महज प्रक्रिया या मुग्ध देखना

दृष्टि का कार्य यही इसको है भेदना


चेतना का प्रथम चरण होते सहज वरण

वेदना के प्रकरण उसका न होता क्षरण

सत्य को बूझे बिना तथ्य का क्यों रेंकना

दृष्टि का कार्य यही इसको है भेदना


प्यार प्रखर प्रदीप्त जग में संलग्न तृप्ति

फिर भी मन दौड़ता देख एक नई आसक्ति

आत्मा शून्य में मन करता रहे अवहेलना

दृष्टि का कार्य यही इसको है भेदना।


धीरेन्द्र सिंह

07.12 2023

09.51


मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

समय

 

बहुत जी लिए ऐसे जीवन को कसके

समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते

 

कभी दिल न सोचा सौगात क्या है

हसरती दुनियादारी की औकात क्या है

कहां पर हैं पहुंचे यूं सरकते-सरकते

समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते

 

प्रणय पाठ का वह जीवन भी अलग था

समय ज्ञात था पर करम ही विलग था

समर्पण रंग रहा नए स्वांग भरते-भरते

समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते

 

जो साथ वह तो हैं भी कितने साथ

पास जो राह रहे हैं भी कितने पास

बीच अपनों में खुद को तलाशते बचते-बचते

समय जा रहा छूकर यूं हंसते-हंसते।

 

धीरेन्द्र सिंह

05.12.2023

15.30

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

छुवन

 

तुम्हें अपनी बातें कहने लगे तो

तुमको लगे, मशवरा हो गया

 

अपने कथन में वचन सब समेटे

पुतला खड़ा, दशहरा हो गया

 

जहां से बही थी नदिया वो निर्झर

मंदिर बना फरफरा हो गया

 

जहां हमकदम संग झूमा गगन था

वहां धरती मिल मक़बरा हो गया

 

बहती हवा संग मिलो तुम कभी तो

खुश्बू बिखर, नभभरा हो गया

 

गया क्या अक्सर कहता है जीवन

छुवन एक थी, दर्दभरा हो गया।

 


धीरेन्द्र सिंह

02.12.2023

09.58

किसान

 प्रस्ताव सविनय निवेदित

आगत तो होता अतिथि


कौन कलेवा आज बंधा

कौन हल से है नधा

कौन धूप से व्यथित

आगत तो होता अतिथि


संग कलेवा आया संदेसा

मचान को धूप ने सेंका

रजाई तकिया संबंधित

आगत तो होता अतिथि


पम्पिंग सेट की जलधार

रहँट कुएं से गयी उतार

दुआर रहा न आनंदित

आगत तो होता अतिथि


बहुत कठिन है किसानी

श्रम के बूंदों की कहानी

फसल चाह किसान क्रन्दित

आगत तो होता अतिथि।


धीरेन्द्र सिंह


01.12.2023

15.32

गुरुवार, 30 नवंबर 2023

तूफान है आनेवाला

 मन उमस सा भाव सहज चितवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


सबसे कटकर रहना और बात न करना

एक अजीब खामोशी का रहता धरना

विषय अधूरे सब मन ना लिखनेवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


वैचारिक आच्छादित बदलियां क्रमशः

प्रतिदिन लेखन गति कहे मत बह

कल्पनाशीलता को कौन है जडनेवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


सम्प्रेषण संवाद सहित कभी वाद-विवाद

इस समूह से उस समूह तक परिवारवाद

रचनात्मकता पर अपने फोटो की क्रममाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला


हर घटना का मिलता पहले से संकेत

शान्ति अजीब में उड़ता सुगंध अतिरेक

मन उत्सुक क्या कुछ उड़ है आनेवाला

अभिव्यक्तियां ठहरी तूफान है आनेवाला।


धीरेन्द्र सिंह

30.11.2023

19.58


बुधवार, 29 नवंबर 2023

प्लास्टिक फुलवारी

 हृदय स्पंदनों की पर्देदारी

यही सभ्यता यही होशियारी


कामनाओं के प्रस्फुटन निरंतर

अभिव्यक्तियों के सब सिकंदर

गुप्तता में सकल कर्मकारी

यही सभ्यता यही होशियारी


प्रतीकों में हो रही बातें

इ मिलाप के दिन रातें

संबंधों में इमोजी लयकारी

यही सभ्यता यही होशियारी


मौलिकता की खुलेआम चोरी

सात्विकता की दिखावटी तिजोरी

मानवता की विचित्र चित्रकारी

यही सभ्यता यही होशियारी


सबके समूह सबके घाट

सब अलमस्त दिखाए ठाठ

आधुनिकता बनी प्लास्टिक फुलवारी

यही सभ्यता यही होशियारी।


धीरेन्द्र सिंह

29.11.2023

19.03

सोमवार, 27 नवंबर 2023

चुक गए संवाद

 शब्द कितने चुक गए संवाद

फिर भी कथनी नहीं आबाद


प्यार कितने रूप में हैं बिखरे

और कितने भाव के जज्बात


शब्द भाव लगे रेत धूरी

भाव निभाव की हरकत अधूरी

कल्पनाओं की सजे नित बारात

अनुभूगियों के भी घात-प्रतिघात


भंवर सा घूमता भाव प्यार

संवर कर ढूंढता चाव धार

सीढ़ियों पर दिखता हर नात

प्यार ऊंचा हो कबकी बात


लिख रहे कुछ, जिएं प्यार

पढ़ रहे, समझ की झंकार

शब्द चुका या चुका संवाद

कथनी संग मथनी नित मुलाकात।


धीरेन्द्र सिंह

27.11.2023

21.29


रविवार, 26 नवंबर 2023

कभी तुम

कभी तुम सोचती राहों से गुजरी हो
कभी क्या वादे कर के मुक़री हो
प्रणय के दौर के बदलते तौर कई
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो

अंजन रचित नयन नित बन खंजन
हृदय के द्वार पर अलख निरंजन
क्या इन स्पंदनों में कभी बिखरी हो
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो

समर्पित प्यार ही निभाव का अनुस्वार
बारहखड़ी बोलो नहीं क्या इसका द्वार
व्याकरण प्यार का क्या सुर डफली हो
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो

समझ ना आए समझाने पर यह प्यार
डूबकर दबदबाना और प्रदर्शित प्रतिकार
समझ में तुम भी क्या जैसे अर्दली हो
क्या कभी तुम अपना तौर बदली हो।

धीरेन्द्र सिंह
26.11.2023
22.22

शनिवार, 4 नवंबर 2023

इस जमाने में

 मैंने नभ को छोड़ दिया बुतखाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


सूर्य रश्मियां छू न सकें अभिलाषी

जीव-जंतु सब ऊष्मा के हैं प्रत्याशी

धरती बदल रही जाने-अनजाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


पत्ते धूल धूसरित भारयुक्त भरमाए

कैसे हो स्पंदित जग पवन चलाएं

आरी और कुल्हाड़ी उलझे कट जाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


उद्योग जगत में भी दिखे मनमानी

यहां-वहां, गंगा में छोड़ें दूषित पानी

माँ गंगा को कर प्रणाम आचमन गाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में


दिन में पैदल चलना भी एक साहस है

वायु, वाहन, व्यग्रता से सब आहत हैं

क्या जाएगा बदल ऐसा लिख जाने में

वायरस संक्रमण मिले इस जमाने में।


धीरेन्द्र सिंह

04.11.2023

13.08

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

सुबह नई

 भावनाएं रंगमयी मन में सुलह कई 

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई 


जीवन पथ पर कर्म के कई छाप

कदम सक्रिय रहें सदा राहें नाप

स्वास्थ्य चुनौतियां टीस पुरानी, नई

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई


सांस अथक दौड़, आस सार्थक तौर

स्वयं से अपरिचित, अन्य कहीं गौर

जीवन असुलझते तो गुत्थमगुत्था भई

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई


आवारगी की मौज में तमन्नाएं फ़ौज

अभिलाषाएं करें निर्मित नित नए हौज

डुबकियाँ में तरंगों की मस्त हुड़दंगई

कामनाएं सुरमयी तन में सुबह नई।


धीरेन्द्र सिंह

20.10.2023

18.12

बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

सरणी

 देखी हो कभी

प्रवाहित सरणी

हृदय की,

बैठी हो कभी 

तीरे

निःशब्द, निष्काम

हृदय धाम

नीरे-नीरे,

देखी हो चेहरा

तट पर ठहरे जल में

धीरे-धीरे,

एक गंगा है

हृदय प्रवाहित

आओ

 हाँथ में दिया लिए

प्रवाहित कर दें

भांवों को संयुक्त,


मुड़ जाएं अपनी राह

जहां चाह।


धीरेन्द्र सिंह

18.10.2023