आलीशान मकानों से डर लगता है
सफेदपोशों से अब डर लगता है
गाँधी,सुभाष,भगत सिंह,बिस्मिल
आ जाएँ कि फिर डर लगता है
आज नेतृत्व की नियत है निठुर
कारवां के भटकने का डर लगता है
जिस मिट्टी के सोंधेपन में सरूर
बदले ना कहीं खुशबू कि डर लगता है
उफन रहीं तो कहीं सूख रहीं नदियाँ
अब कश्तियों को भी डर लगता है
प्यार में भी मिलावट ना रहे तरावट
ऐसी बनावट से अब डर लगता है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.