सूर्य रखता भाल पर तन पूर्ण स्वेद
माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद
माटी मधुर संगीत बन फसलें लहराए
वनस्पति संग जुगलबंदी से फल इतराएं
कृषक चषक सा माटी में भरता श्रम नेग
माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद
सर्दी की ठिठुरन में खेतों की रखवाली
मर्जी से ना मिल पाए अपनी घरवाली
थाली लोटा ऊंघता माटी भीत को देख
माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद
मौसम मार पशुओं का वार फसल सहे
करे किसानी बस मचान चहुं दिशा गहे
ट्रैक्टर ट्रॉली अर्थ बवाली नहीं विशेष
माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद
अन्न देवता देश का है गरीब किसान
रोटी-बेटी जब जगें माटी दे तब तान
है समर्पित साधक माटी योगी निस्तेज
माटी से कलरव कृषक करे बिन भेद।
धीरेन्द्र सिंह
01.02.2024
12.29