गद्य-पद्य संरचना
भांवों के कंगना
सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना
कुछ चाहें लिखना निर्धारित जो
मानक
कुछ की अभिव्यक्तियां मुक्त उन्मानक
सर्जना कब चाहती है शर्तों में
बंधना
सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना
यह लेखन सही गलत है यह उद्बोधन
पर सबमें निहित अर्थ सार्थक संबोधन
हर सोच नई लेखन नया क्यों दबंगना
सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना
श्रेष्ठता का चयन हो जैसे शबरी
बेर
यह क्या लिखनेवालों को करते रहें
ढेर
वर्चस्वता का ढोंग भरे उसका संग
ना
सबकी अपनी मर्जी लीपें जैसे अंगना।
धीरेन्द्र सिंह
30.01.2024
12.22