रचित है रमित है राग अनुरागी
कथित है जनित है प्रीत बहुरागी
व्यंजना में भावों की कई युक्तियां
कामनाओं की नित कई नियुक्तियां
पहल प्रयास निस असफल प्रतिभागी
कथित है जनित है प्रीत बहुरागी
तुम तो महज मनछाँव सहज हो
व्यथित हृदय पूछे अब कहाँ हो
वो पहलभरे दिन चाह दिलरागी
कथित है जनित है प्रीत बहुरागी
सांत्वना के बोल कहते मत बोल
विवशता या मजबूरी जेहन में तोल
कुछ ना असहज दृष्टि ही सुरागी
कथित है जनित है प्रीत बहुरागी।
धीरेन्द्र सिंह
10.12.2023
21.29