सावन में
व्योम और धरा का
उन्मुक्त प्रणय
कर देता है उन्मादित
संवेदनशीलता को
प्रणय हवा आह्लादित,
सावन की सुबह
करती है निर्मित
हृदय प्यार पंखुड़ियां
सड़क चलें तो
मिलती जाती
प्रणय-प्रणय की कड़ियाँ,
स्व से प्यार
सड़क सिखलाए
सावन हरदम
बाहर झुलाए
भीतर तो घनघोर छटा
कुछ भींगा कुछ छूट पटा,
स्व में डूबे चलते-चलते
बारिश हो ली
खोला छाता देखा
कुछ टूटी हैं तीली
शरमाया मन
अगल-बगल ताके नयन
जैसे खुला बटन रह गया
या हुक खुली लगे है चोली,
कौन अकेला लगता
सावन संग मनचोर है चलता
प्रकृति प्रेम बरसाए जब
छलिया मनजोर है छलता।
धीरेन्द्र सिंह
24.07.2024
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