मंगलवार, 27 अगस्त 2024

बूंदे

 बूंदों ने शुरू की जब अपनी बोलियां

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां

 

सड़कों पर झूमता था उत्सवी नर्तन

हवाएं भी संग सक्रिय गति परिवर्तन

बदलियों का उत्पात मौसम बहेलिया

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां

 

सरपट भाग रहीं, दौड़ रहीं लक्ष्य कहीं

पहाड़ियां गंभीर होकर कहें ताक यहीं

थीं सड़कें खाली हवा-बूदों की सरगर्मियां

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां

 

प्रकृति का यह रूप जैसे भव्य समारोह

बूंदें आतुर दौड़ें असहनीय विछोह मोह

सब सिखाती प्रकृति जीवन के दर्मियाँ

सखी-सहेलियों की उमड़ पड़ी टोलियां।

 

धीरेन्द्र सिंह

28.08.2024

08.14


भवितव्य

 नेह का भी सत्य, देह का भी कथ्य

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य


शिखर पर आसीन दूरदर्शिता भ्रमित

तत्व का आखेट न्यायप्रियता शमित

चांदी के वर्क के नित नए वक्तव्य

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य


इस तरफ उस तरफ योजनाबद्ध शोर

कोई चाहे दे पटखनी कोई कहे सिरमौर

इन द्वंदों में लोग भूल गए गंतव्य

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य


गुटबंदियाँ चाय पान की सजी दुकान

चौहद्दियाँ हों विस्तृत लगाते अनुमान

महत्व विकास गौण, निज लाभ घनत्व

इन दोनों के बीच है कहीं भवितव्य।


धीरेन्द्र सिंह

27.08.2024

20.05




सोमवार, 26 अगस्त 2024

कामनाएं

 उम्र की बदहवासी

सारी उम्र सताए खासी

मन गौरैया की तरह

रहता है फुदकता

कभी डाल पर

कभी मुंडेर पर;


मिटाती जाती है

वह पंक्तियां जिसे

लिखा था मनोयोग से

कामनाओं ने 

भावनाओं ने, रचनाओं ने

उड़ जाती है गौरैया;


कब खुला है आसमान

कब खुली है धरती

कब खुला इंसान

होती हैं बातें खुलने की

मनचाहे आसमान उड़ने की

गौरैया उड़ती तो है पर

लौट आती है 

अपने घोंसले में;


संभावनाओं को डोर पर

कामनाओं की बूंदे

थमी हुई

करती रहती हैं प्रतीक्षा

गौरैया की।


धीरेन्द्र सिंह

27.08.2024

06.49


रविवार, 25 अगस्त 2024

रचनाएं

 आपकी रचनाएं

दौड़ रही हैं

बनकर लहू

चाहतों से

और क्या कहूँ-


आपके रचना भाव

बरगद की घनी छांव

सुस्ताती जिंदगी है

शीतल मंद बयार

और खूब गेहूं;


आपके शब्द चयन

जैसे चढ़ावे के फूल

रंग और सुगंध अनुकूल

आसक्ति की डोर

और ऊपर चढूं;


आपकी रचनाधर्मिता

विषयों का आलोड़न

रचनाओं का सम्मोहन

आप लिखती रहें

और मैं पड़ता रहूं।


धीरेन्द्र सिंह

26.08.2024

06.33


शनिवार, 24 अगस्त 2024

हथेली

 पौधे की टहनी

खिला हुआ फूल

पकड़ी हथेली देख

फूल गया भूल

 

गुलाबी गदरायी हथेली

पौधे को दे तूल

पुष्प खिलाया अभिनव

जैसे हथेली फूल

 

तुम निस दिन संवारो

पौधे में नव फूल

हतप्रभ सुंदर पुष्प

जीवन यही समूल।

 

धीरेन्द्र सिंह

24.08.2024

19.08

ठरकी

 चालित, स्वचालित या संचालित

यूं रहस्यमय हों जैसे कापालिक

पूर्णता, अपूर्णता या संपूर्णता

प्रगति के दौर बड़े तात्कालिक


रात्रि अलाव दिखा अग्नि भभकी

स्वाहा हो चुका तब पुलिस पहुंची

अहंकार, अहंधार या आत्महुंकार

ढूर-दराज हालत यही सबकी


कौन सहे, कौन गहे, कौन बहे

कौन है सत्य है कौन प्रामाणिक

कौन गहे, कौन मथे, कौन सधे

कौन तथ्य है जो संवैधानिक


दूर कहीं जमघट में हो रही चर्चाएं

अबकी पर्व में कौन होगा सनकी

100 नंबर डायल किया बात हुई

सुबह खबर थी गए पकड़े ठरकी।


धीरेन्द्र सिंह

24.08.2024ठरकी

14.37


शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

कुंवारी सांझ

 एक कुंवारी सांझ हो तुम

कोमल मद्धम आंच हो 

दिन बहुत छका चला अब

एक तुम्ही सहेली साँच हो


उपवन में सब फूल सूख रहे

तुम ही करुणा गाछ हो

जरा ठहर सुस्ताए जिंदगी

खुश मौसम का उवाच हो


दिन षड्यंत्र कर चलता बना

वह ढूंढ लिया जहां कांच हो

रात्रि बेला कर रही तैयारी

कब, कैसे उपद्रवी नाच हो


हे सांझ कुंवारी तुम ही कहो

कहां ऊर्जा संचयन खास हो

इधर-उधर जल रही आग है

बुझ जाए ऐसी कोई पांत हो।


धीरेन्द्र सिंह

23.08.2024

16.39