सोमवार, 26 अगस्त 2024

कामनाएं

 उम्र की बदहवासी

सारी उम्र सताए खासी

मन गौरैया की तरह

रहता है फुदकता

कभी डाल पर

कभी मुंडेर पर;


मिटाती जाती है

वह पंक्तियां जिसे

लिखा था मनोयोग से

कामनाओं ने 

भावनाओं ने, रचनाओं ने

उड़ जाती है गौरैया;


कब खुला है आसमान

कब खुली है धरती

कब खुला इंसान

होती हैं बातें खुलने की

मनचाहे आसमान उड़ने की

गौरैया उड़ती तो है पर

लौट आती है 

अपने घोंसले में;


संभावनाओं को डोर पर

कामनाओं की बूंदे

थमी हुई

करती रहती हैं प्रतीक्षा

गौरैया की।


धीरेन्द्र सिंह

27.08.2024

06.49


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