रविवार, 28 अप्रैल 2024

दालचीनी

 अनुभूतियां अकुलाएं बुलाएं मधु भीनी

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी


नवतरंग है नव उमंग है उम्र विहंग

जितना जीवन समझें उतना रंगविरंग

मुखरित हो अनुभूतियां ओढ़े चादर झीनी

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी


अन्नपूर्णा स्थान है घर की रसोई

संग मसालों के दालचीनी भी खोई

क्षुधा तृप्ति निरंतर जग की कीन्ही

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी


जुगनू सी जलती-बुझती हैं अभिलाषाएं

हृदय भाव का हठ किसको बतलाएं

स्व कर उन्मुक्त धरा सजल रस पीनी

तीखा, मीठा, गर्म सा मैं दालचीनी।


धीरेन्द्र सिंह

29.04.2024


09.24

तलाश

 आप अब झूमकर आती नहीं हैं

मौसम संग ढल गाती नही हैं

योजनाएं घर की लिपट गईं है

उन्मुक्त होकर बतियाती नहीं हैं


यहां यह आशय प्रणय ही नहीं

पर जगह बतलाएं प्रणय नहीं है

सैद्धांतिक, सामाजिक बंधन है

ढूंढा तो लगा आप कहीं नहीं हैं


हो गया है प्यार इसे पाप समझेंगी

सोशल मीडिया क्या पुण्यात्मा नही है

यह सोच भी मोच से लगे ग्रसित

प्यारयुक्त क्या मुग्ध आत्मा नहीं है


दूरियां भौगोलिक हैं मन की नहीं

क्या मन की भरपाई नहीं है

कविता है एक प्रयास ही तो है


क्या कोई ऐसी चतुराई नहीं है।


धीरेन्द्र सिंह

28.04.2024

11.04

शनिवार, 27 अप्रैल 2024

संसार

 मन डैना उड़ा भर हुंकार

बचा ही क्या पाया संसार


तिल का ताड़ बनाते लोग

जीवन तो बस ही उपभोग


उपभोक्ता की ही झंकार

बचा ही क्या पाया संसार


कलरव में वह संगीत नहीं

हावभाव में अब गीत नहीं

निज आकांक्षा ही दरकार

बचा ही क्या पाया संसार


कृत्रिम प्यार उपभोग कृत्रिम

एकल सब जीवन मिले कृत्रिम

परिवार का कहां है दरबार

बचा ही क्या पाया संसार


भाव बुलबुले व्यवहार मनचले

सोचें कौन है दूध धुले

शक-सुबहा नित का तकरार

बचा ही पाया क्या संसार


मन डैना उड़ता मंडराए

दूसरे डैने यदि पा जाएं

परिवर्तन की चले बयार

बचा ही क्या पाया संसार।


धीरेन्द्र सिंह

27,.04.2024

08.31

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

देह की बात

 देह की बात नहीं, दिल के बहाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने


कोई कहे खुलापन अश्लील भौंडापन

कोई कहे देह वातायन है सघन

देह वलय तरंगित ताकते मुहाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने


गुड टच बैड टच प्री स्कूल बताए

मच-मच देह क्रूरता न रुक पाए

प्रेम कहां प्यार कहां विक्षिप्त मनमाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने


दो पंक्ति चार पंक्ति काव्य रचना

देह की उबाल को प्यार कह ढंकना

प्यार रहे मूक, समर्पित स्व बुतखाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तस्राने


एक प्रदेश हर लड़की का समवय भईया

सामाजिक बंधन में लड़की दैया-दैया

दूजे प्रदेश में लड़की झुकाए सब सयाने

छुपाकर भाव लिखे जा रहे तराने।


धीरेन्द्र सिंह


26.04.2024

16.39

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

भोर बहंगी

 भोर भावनाओं की ले चला बहंगी

लक्ष्य कहार सा बन रहा सशक्त

वह उठी दौड़ पड़ी रसोई की तरफ

पौ फटी और धरा पर सब आसक्त


सूर्य आराधना का है ऊर्जा अक्षय

घर में जागृति, परिवेश से अनुरक्त

चढ़ते सूरज सा काम बढ़े उसका

आराधनाएं मूक हो रहीं अभिव्यक्त


भोर की बहंगी की है वह वाहक

रास्ते वही पर हैं ठाँव विभक्त

कांधे पर बहंगी और मुस्कराहट

भारतीयता पर, हो विश्व आसक्त


भोर भयी ले चेतना विभिन्न नई

बहंगी वही पर धारक है आश्वस्त

सकल कामना रचे घर चहारदीवारी

कर्म भोर रचकर यूं करती आसक्त।


धीरेन्द्र सिंह

25.04.2024


12.15

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

सोहबत

 शब्दों से यारी भावनाओं से मोहब्बत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


खयालों में खिलते हैं नायाब कई पुष्प

हकीकत में गुजरते हैं लम्हें कई शुष्क

लफ़्ज़ों में लज्जा अदाओं का अभिमत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


वक़्त बेवक्त मुसलसल जिस्म अंगड़ाईयाँ

एक कसक कि कस ले फ़िज़ा अमराइयाँ

वह मिलता है कब जब होता मन उन्मत्त

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


जब छुएं मोबाईल तब उनका नया संदेसा

लंबी छोटी बातों में अनहोनी का अंदेशा

कितना भी संभालें हो जाती है गफलत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत


बेफिक्र बेहिसाब मन डूबे दरिया-ए-शवाब

इश्क़ की सल्तनत पर बन बेगम, नवाब

एहसासों की सांसें झूमे सरगमी अदावत

भला फिर क्यों दिल को कोई सोहबत।


धीरेन्द्र सिंह


24.04.2024

10.01

मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

प्रणय आगमन

 प्रणय पल्लवन का करें आचमन

सबको नहीं मिलता प्रणय आगमन


एक कविता उतरती है बनकर गीत

अपने से ही अपने की होती है प्रीत

मन नर्तन करे हो उन्मुक्त विहंगम

सबको नहीं मिलता प्रणय आगमन


हंसकर बोलना कुछ मस्ती मजाक

यही प्यार है लोगों लेते हैं मान

प्यार का मूल लक्षण ही है तड़पन

सबको नहीं मिलता प्रणय आगमन


हर बार हो छुवन करीब के कारनामे

कभी खुलकर हंसना कभी तो फुसफुसाने

यह है आकर्षण प्यार का धीमा खनखन

सबको नहीं मिलता प्रणय आगमन


एक साधक की साधना सा है प्यार

धड़कन में यार का अविरल हो खुमार

विचारों में संवेदनाओं का हो नमन

सबको नहीं मिलता प्रणय आगमन।


धीरेन्द्र सिंह


23.04.2024

18.01