गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

आपके नयन


आपके नयनों की क्यारी में
चमक रहे हैं जुगनू एकसे सारे
मेरे लबों ने जो चाहा पकड़ना
जुबान पर चढ़ गए खारे-खारे

नयन में मेघ सी पुतलियाँ उडें
बीच में चंचल मेघ कारे-कारे
पलकें फड़फड़ाए ले बेचैनियाँ
जुगनुओं में अक्स वही प्यारे-प्यारे

दरक पड़ने को है नक्काशियां कजरारी
चटक जाने को है आसमान सकारे
उफन ना जाये कहीं अब गंगा
मांझी-मांझी लगे कोई पुकारे

नयन की बात नयन ही जाने
जीवन से जुड़े हैं कई किनारे
कोशिशें भी होती हैं नाकाम अक्सर
हार जाते ना मिल पाते किनारे.
     


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

अपनी राहों पर चलनेवाले

 
अपने कर्मों में छुपा कर हसरतें सारी
राह जीवन के हम चलते रहे हरदम
लक्ष्य से छूटा ना कभी साथ मेरा
छोड़ कर साथ मेरा बढ़ते रहे हमदम

एक सिद्धांत, एक आदर्श और नैतिकता
दोस्त कहते रहे इसको एक वहम
तरक्की और तरक्की की प्यास लिए
सभी राहों पर चले लोलुपता के कदम

सफलता ही जहाँ की है पहचान बनी
सफलता पाने के हैं अजीब जतन
टूट जाता है, झुक जाता व्यक्तित्व
लोग कहते हैं वाह क्या है रतन

अपनी राहों पर चलनेवाले हैं अलग
सफल होते हैं ले अपना दमख़म  
वक्त करता है दर्ज नाम उनका
पर ऐसे लोग अब होते हैं कम.  


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

कैसे ना चाहे दिल


क्या कहूँ क्या-क्या गुजर जाता है
इश्क जब दिल से गुजर जाता है

एक संभावना बनती है संवरती है
पल ना जाने कैसे मुकर जाता है

एक से हो गयी मोहब्बत बात गयी
इश्क फिर दोबारा ना हो पाता है

ना जाने क्यों दूजे की ना बात करें
इंसान खुद से खुद को छुपाता है

दिल को छू ले तो हो जाए प्यार
प्रीत की रीत जमाना झुठलाता है

कैसे ना चाहे दिल यह खूबसूरती
जब लिखती हो दिल पिघल जाता है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

बोल दो ना कब मिलूं


रूप हो तुम चाहतों की
निज मन की आहटों की
और अब मैं क्या कहूँ
और कितना चुप रहूँ

केश का विन्यास हो कि
अधरों का वह मौन स्पंदन
क्रन्दनी मन संग क्या करूँ
और कितना धैर्य धरूं

यह शराफत श्राप मेरा
लोक-लाज अभिशापी घेरा
मन वलयों को कितना गहूँ
और कितना जतन करूँ

प्रीत की खींची प्रत्यंचा
रीत है पकड़ी तमंचा
काव्य कितना और लिखूं
बोल दो ना कब मिलूं.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

आज सुबह मुस्कराई

आज सुबह मुस्कराई आपकी याद में
भोर की किरणें मुझसे यूं लिपट गई
मानों खोई राह की भटकनें कई
पाकर अपनी मंज़िल दुल्हन सी सिमट गई

व्यस्त जीवन की हैं और कई कठिनाईयॉ
आपकी यादें हैं लातीं टूटन भरी अंगड़ाईयॉ
हैं चुनौतियॉ फिर भी चाहतें मचल गईं
आपकी यादों से जुड़कर ज़िंदगी बहल गई

रात्रि के पाजेब में तारों की नई खनक
चांद चितचोर को थी प्रीत की नई सनक
आपकी ज़ुल्फों में फिर चांदनी उलझ गई
रात्रि पिघलने लगी ना कब जाने भोर हो गई.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

पराक्रमी

शक्ति,शौर्य, संघर्ष ही नहीं है हल
संग इसके भी चरित्र एक चाहिए
पद,प्रतिष्ठा,पराक्रम से न बने दल
उमंग के विश्वास में समर्पण भी चाहिए

लक्ष्य भेदना ही धर्म नहीं है केवल
सत्कर्म को वर्गों में बांटना चाहिए
एकल हुआ विजेता तो यह कैसी जीत
वैचारिक ऊफान को भी  जीतना चाहिए

जीत-हार से बंधता नहीं पराक्रमी
पद,प्रतिष्ठा यहॉ सबको नहीं चाहिए
कर्म की धूनी पर पके लक्ष्यी कामनाएं
परिवर्तन के लिए पैगाम कोई चाहिए

एक ही सुर से जुड़ता रहा है कोरस
गीत की प्रखरता को निखारना चाहिए
नई नज़र, नई डगर हासिल नहीं सबको
धूप चुभन में सूरज को ललकारना चाहिए. 


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 28 मार्च 2011

क्रिकेट

एक शोर
जोरशोर से चलाए हवा
जिससे
मुड़ जाती हैं
अधिकांश निगाहें
इसे ही कहते हैं
हवा का रूख बदलना.

एक व्यक्ति
मिलाकर कुछ व्यक्ति
लेकर कई मानव शक्ति
करता है हरण
हवा की नमी का
इसे ही कहते हैं व्यावसायिक संचलन.

एक प्रयास
मनोरंजन में लपेट
दे भावनात्मक एहसास
पूरे के पूरे देश को
एक सोच के लिए
करता मज़बूर
इसे ही कहते हैं आधुनिक आखेट
या फिर कहिए खेल क्रिकेट.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.