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बुधवार, 23 नवंबर 2011

प्यार के गीत लिखो




स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें ख्वाबों में अक्सर दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है

चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार भी मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है

इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार  
आज के वक़्त को ना भाती है

प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेसबुक,ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ  
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।

  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 9 मई 2011

डर लगता है

आलीशान मकानों से डर लगता है
सफेदपोशों से अब डर लगता है

गाँधी,सुभाष,भगत सिंह,बिस्मिल
आ जाएँ कि फिर डर लगता है

आज नेतृत्व की नियत है निठुर
कारवां के भटकने का डर लगता है

जिस मिट्टी के सोंधेपन में सरूर
बदले ना कहीं खुशबू कि डर लगता है

उफन रहीं तो कहीं सूख रहीं नदियाँ
अब कश्तियों को भी डर लगता है

प्यार में भी मिलावट ना रहे तरावट
ऐसी बनावट से अब डर लगता है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

यथार्थ हो या कि मृगमरीचिका

अनुपम,अनुभूत हो, अज्ञेय हो
रिमझिम, झिलमिल प्रभाव है
कलरव की अनुगूंज तुम हो
चन्दा सरीखा तो स्वभाव है

चंदनीय सुगंध ले शीतलता नयी
पुरवैया का तुममें बयार है
रूप हैं तुम्हारे जग में कई  
हर रूप से बरसता प्यार है

मुस्कराहटों में वादियों की छटा
अंग-अंग सप्तक का तार है
सृष्टि सुघड़ सप्तरंगी लग रही
हर जगह तुम्हारा खुमार है

इन्द्रधनुषीय भंगिमाएं हरदम लुभाए
भावनाएं पूछतीं कहाँ इकरार है
यथार्थ हो या कि मृगमरीचिका
विश्व में असुलझा यह तकरार है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

आपके नयन


आपके नयनों की क्यारी में
चमक रहे हैं जुगनू एकसे सारे
मेरे लबों ने जो चाहा पकड़ना
जुबान पर चढ़ गए खारे-खारे

नयन में मेघ सी पुतलियाँ उडें
बीच में चंचल मेघ कारे-कारे
पलकें फड़फड़ाए ले बेचैनियाँ
जुगनुओं में अक्स वही प्यारे-प्यारे

दरक पड़ने को है नक्काशियां कजरारी
चटक जाने को है आसमान सकारे
उफन ना जाये कहीं अब गंगा
मांझी-मांझी लगे कोई पुकारे

नयन की बात नयन ही जाने
जीवन से जुड़े हैं कई किनारे
कोशिशें भी होती हैं नाकाम अक्सर
हार जाते ना मिल पाते किनारे.
     


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

कैसे ना चाहे दिल


क्या कहूँ क्या-क्या गुजर जाता है
इश्क जब दिल से गुजर जाता है

एक संभावना बनती है संवरती है
पल ना जाने कैसे मुकर जाता है

एक से हो गयी मोहब्बत बात गयी
इश्क फिर दोबारा ना हो पाता है

ना जाने क्यों दूजे की ना बात करें
इंसान खुद से खुद को छुपाता है

दिल को छू ले तो हो जाए प्यार
प्रीत की रीत जमाना झुठलाता है

कैसे ना चाहे दिल यह खूबसूरती
जब लिखती हो दिल पिघल जाता है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

आज सुबह मुस्कराई

आज सुबह मुस्कराई आपकी याद में
भोर की किरणें मुझसे यूं लिपट गई
मानों खोई राह की भटकनें कई
पाकर अपनी मंज़िल दुल्हन सी सिमट गई

व्यस्त जीवन की हैं और कई कठिनाईयॉ
आपकी यादें हैं लातीं टूटन भरी अंगड़ाईयॉ
हैं चुनौतियॉ फिर भी चाहतें मचल गईं
आपकी यादों से जुड़कर ज़िंदगी बहल गई

रात्रि के पाजेब में तारों की नई खनक
चांद चितचोर को थी प्रीत की नई सनक
आपकी ज़ुल्फों में फिर चांदनी उलझ गई
रात्रि पिघलने लगी ना कब जाने भोर हो गई.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

पराक्रमी

शक्ति,शौर्य, संघर्ष ही नहीं है हल
संग इसके भी चरित्र एक चाहिए
पद,प्रतिष्ठा,पराक्रम से न बने दल
उमंग के विश्वास में समर्पण भी चाहिए

लक्ष्य भेदना ही धर्म नहीं है केवल
सत्कर्म को वर्गों में बांटना चाहिए
एकल हुआ विजेता तो यह कैसी जीत
वैचारिक ऊफान को भी  जीतना चाहिए

जीत-हार से बंधता नहीं पराक्रमी
पद,प्रतिष्ठा यहॉ सबको नहीं चाहिए
कर्म की धूनी पर पके लक्ष्यी कामनाएं
परिवर्तन के लिए पैगाम कोई चाहिए

एक ही सुर से जुड़ता रहा है कोरस
गीत की प्रखरता को निखारना चाहिए
नई नज़र, नई डगर हासिल नहीं सबको
धूप चुभन में सूरज को ललकारना चाहिए. 


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 28 मार्च 2011

जीवन

निर्मोही निर्लिप्त सजल है
यह माटी में  जमी गज़ल है

खुरच दिए इक परत चढ़ी
चेहरे में भी अदल - बदल है


लोलुपता लालसा लय बनी
इसीलिए यह नई पहल है


नई क्रांति का नया बिगुल
चंगुल में लाने का छल है


मानव का मुर्दा बन जीना
फिर भी कितनी हलचल है


नई परत से चेहरा नया
हर कठिनाई का यह हल है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्यार पर एतबार

एक चाहत प्यार का झूला झूले
मन में उठती आकर्षण की हरकतें
दौड़ पड़ता मन किसी मन के लिए
यदि हो ऐसा तो कोई क्या करे

एकनिष्ठ प्यार पर एतबार तो रहा नहीं
मन है चंचल नित नवल हैं हसरतें
कैसे हो एक पर ही हमेशा समर्पण पूर्ण
दिखे हैं चेहरे हुई हैं चाहतीय कसरतें

प्यार परिभाषाओं में बांध पाया कौन
प्यार मर्यादाओं में टटोलती हैं आहटें
खुद भ्रमित कर दूजा चकित प्यार करें
कौन कहता बेअसर होती हैं सोहबतें

एक आकर्षण से बच पाना कठिन
मन को मन की है पुरानी आदतें
मैं हूं प्यार के उपवन का एक किरदार
दिल नमन करता है प्यार की शहादतें।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 24 मार्च 2011

बंधन

उड़ चलो संग, साथ मिल जाएगा
आसमान बदलियों सा झुकता नहीं
भावनाओं का प्रवाह है निरंतर
किसी अंतर पर यह रूकता नहीं

बंधनों के स्थायित्व की खुशी
हर्षित मन को बंधन पुरता नहीं
एक रिश्ता जन्म भर का मुकाम
जन्म भर पर यह जुड़ता नहीं

होगी कई आपत्तियॉ इस विचार पर
सोच व्यापकता लिए कुढ़ता नहीं
कितनी कोशिशें हो चुकीं नाकाम
मन सोचता पर कदम मुड़ता नहीं

बंधनों को तोड़ने का न हिमायती
बंधनों में रचनात्मकता है मूढ़ता नहीं
बंधनों से मन में जो सिसकारी उठे
झेलना कायरता है यह शूरता नहीं.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीवन संघर्ष

विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
मौसम भी है, ज़ज्बात भी है,
 

बहे भावों का निर्झर सा झरना

पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना

एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना

रहे कुछ ना अटल है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी की सोच से क्या करना.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 23 मार्च 2011

प्यार की राह

सूर्य किरणें कितनी व्याकुल हो दौड़ चलीं
इस धरा पर  प्रीत जैसै  अब तीरथ हुआ है
भोर की अरूणिमा में पुलकित हुई है चाहतें
आज मन को फिर उन्हीं यादों ने छुआ है

चंदा चुपचाप निरखता रहा रात, हतप्रभ
चांदनी में उठता यह कौन सा धुऑ है
करवटें ना समझ सकीं कसमसाहट का सबब
सितारे ना समझ पाए तो कह गए दुआ है

मन के अन्दर मन हैं और भी कई
चाहतों और आहटों को भी गुमां है
कौन सी आराधना है अनवरत, अविकल
मन की सांखल बन कौन यह गुथां है

प्यार का अधिकार हर दिल की पुकार
दो दिलों के दरमियॉ का यह कहकहा है
एक दिल से दूसरे तक दौड़ रही हैं सदाएं
प्रश्न फिर भी खड़ा कि वह दिल कहॉ है.





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली की बोली

आपके रंग  लिए उमंग, छेड़े जंग है
आपके विचारों ने, भिंगाया है मन को
आपको सोचता बैठा हूं, गुमसुम सा मैं
खेल रहा होली संग, भूलकर तन को

आपके गुलाल ने, मलाल सारे धो दिए
मेरा भी अबीर, कबीर सा धरे चमन को
दो चमकती ऑखों संग, दो गुलाल भरे हॉथ
अबीर भी अधीर सा, ढूंढे उसी उपवन को

तन की बोली मन की होली, आज हर्षाए
मन है चंचल नाचे पल-पल, नए गमन को
कैसी चूनर, कहॉ वो झूमर, बावरी जुल्फों संग
मैं निहारूं राग-रंग, आपके इस बनठन को

प्यार है, सम्मान है या आप पर है यह गुमान
रंग सारे ले ढंग न्यारे, निहारे आगमन को
एक सोच कल्पना को दे रहा अमराईयां
होली पर बोली है तरसे, श्रृद्धा आचमन को.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 14 मार्च 2011

यह ना समझिए

 
यह ना समझिए कि, दूर हैं तो छूट जायेंगी
अबकी होली में मैंने, खूब रंगने की ठानी है
यह ना समझिए कि, मिल ना सकेंगे हम
आपके ब्लॉग से, मेरे ब्लॉग का दाना-पानी है

कुछ हैं ख्याल अलहदा, कुछ हुस्न रूमानी
कुछ अंदाज़ निराला, कुछ तो ब्लॉगरबानी है
नया रिश्ता है, अहसास रिसता है हौले-हौले
दिल की आवाज यह, ना कहिए नादानी है

मैंने चुन लिया है रंग, आपके ब्लॉग से ही
जश्न-ए-होली की टोली भी वहीं बनानी है
खिल उठेंगे रंग, आपके रंग से मिलकर ही
फिर देखिएगा कि महफिल भी दीवानी है

दिल की आवाज मन में दबाए तो होली कैसी
ज़िंदगी तो फकत अहसासों की मेहरबानी है
मिलूंगा ज़रूर इस होली पर रंग साथ लिए
मेरे रंग से तो मिलिए यही तो कद्रदानी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.