भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
शाम अजगर की तरह
समेट रही परिवेश
निगल गई
कई हसरतें,
आवारगी बेखबर
रचाए चाह की
नई कसरतें।
धीरेन्द्र सिंह
02.07.2021
शाम 06.17
लखनऊ
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