बुधवार, 21 अगस्त 2024

मैसेंजर

 पहली बार जो देखा उनका फोटो

गाल गुलाल कमाल धमाल समान

मुग्धित मन सौंदर्य निरखते बहका

देने लगा नयन, अधर को सम्मान

 

चलते-चलते भाव फिसलते बहलते

श्रृंगारित शब्द लाया प्रणय अभिमान

सक्रिय छुवन अनुभूति चैट एकतरफा

उलझन क्या कहें सुजान या नादान

 

सावन के झूले सा शब्द लगा रहे पेंग

एकतरफा लेखन दूजी ओर संज्ञान

लेखन को रोका विवेक तब शांत हुए

मैसेंजर पर जमे हुए दुई विद्वान।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.08.2024

11.35

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

कुहूक

 तुम्हें जो सजा दूँ शब्दों से तुम्हारे

महकने लगेंगे वह सारे किनारे

जहां कामनाओं का उपवन सजा

प्रार्थना थी करती सांझ सकारे


एक संभावना हो दबाई कहीं तुम

कई भावनाएं मधुर तुम्हें हैं पुकारे

तुम्हें खोलने को खिल गईं कलियां

सूरज भी उगता है द्वार तुम्हारे


उठा लेखनी रच दो रचना नई

अभिव्यक्तियां भाव हरदम पुकारे

कल्पनाएं सजी ढलने को उत्सुक

प्रीति रीति साहित्य कुहूक उबारे।


धीरेन्द्र सिंह

20.08.2024

21.00


ज़िरह

 आपसे मिल नहीं सकता कभी

क्यों लग रहा सब हासिल है

बेमुरव्वत, बेअदब सिलसिला है

वो मग़रूर हम तो ग़ाफ़िल हैं

 

चंद बातों में खुल गए डैने

यूं लगे आसमां भी शामिल है

उड़ रहा तिलस्म का उठाए बोझा

दिल ही मुजरिम दिल मुवक्किल है

 

उनकी अदालत में डाल दी अर्जियां

अदालत ढूंढ रही कौन कातिल है

मुकर्रर का कुबूल है कह दिए उनको

ज़िरह में देखिए होता क्या हासिल है।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.08.2024

14.04



सोमवार, 19 अगस्त 2024

प्रीति

 मन उलझा एक द्वार पहुंच

प्रीति भरी हो रही है बतियां

सांखल खटका द्वार खुलाऊँ

डर है जानें ना सब सखियां


बतरस में भावरस रहे बिहँसि

गति मति रचि सज रीतियाँ

नीतियों में रचि नवपल्लवन

सुसज्जित पुकारें मंज युक्तियां


देख रहे संस्कार पुकार मुखर

दिलचाह उछलकूद निर्मुक्तियाँ

या तो परम्परा की रूढ़ियों गहें

या वर्तमान गति की नियुक्तियां।


धीरेन्द्र सिंह

21.08.2024

12.10


रक्षा बंधन

 खुला रुंधा स्वर दिव्यता पसर गयी

राखी का त्योहार तृष्णापूर्ति कर गयी

प्रत्येक जुड़ा रचनाकार कुछ लिख गया

प्रत्येक मिठास सिंचित तर कर  गयी


भावनाओं के व्यूह में अपने ही छत्रप

चेतनाएं संकुचित स्वार्थ भेद भर गई

रणदुदुम्भी भी बोल चुप निष्क्रिय रही

वेदिकाएं प्रज्ज्वलित नारियां विकल भई


बहन एक भाव या कि मात्र अनुभूति

रक्षाबंधन अभिनंदन फिर धर गयी

बहन भाव का निभाव स्वभाव बसे

नारी वेदना क्यों समाज अधर भई


रक्षा पर्व है गर्व उत्कर्ष बहन-भाई

इसी समाज में युवती दे रही दुहाई

रक्षा बहन का भाई का निज धर्म

नारी यातना रुके बंधन की बधाई।


धीरेन्द्र सिंह

20.08.2024

00.53


रविवार, 18 अगस्त 2024

रंगीली डोरियां

 दृष्टि को बाधित न कर पाए दूरियां

खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां


कोई स्कूटर से उतरे कोई उतरे कार

पैदल कोई अपलक सड़क करता प्यार

शाम का बाजार राखी पर्व अँजोरिया

खींच लेतीं लटकती रंगीली डोरियां


झुंड का झुंड युवतियों की भरमार

राखियां मुस्कराती कर रहीं सत्कार

दुकान दब गई बहना मन आलोड़ियाँ

खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां


दृष्टि और राखियों में था गजब संवाद

मिठाई की दुकान पर था स्वाद विवाद

बहन की धूम थी भातृभाव गिलौरियां

खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां।


धीरेन्द्र सिंह

18.08.2024

18.27

पुणे का बाज़ार।




गुरुवार, 15 अगस्त 2024

असुलझी कहानियां

 जीवन की हैं कुछ अपनी निज बेईमानियां

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां


एक दरस रचना भाव निभाव बन गया

एक सरस था संवाद स्वभाव बन गया

कहन के दहन की लगन बेजुबानियाँ

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां


अभिव्यक्तियों की चाह भले को बहलाएं

आसक्तियों की राह रुपहले मार्ग दिखलाए

हसरतें तलाशती हैं खूबसूरत सी नादानियां

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां


सुलझ गया तो मानो कुछ वश में ना रहा

ऐसा भी क्या जीवन जो चाहे बस कहकहा

कुछ दर्द हो कुछ तड़प लिए कारस्तानियां

कहते नहीं थकता मन असुलझी कहानियां।


धीरेन्द्र सिंह

16.08.2024

10.55