दृष्टि को बाधित न कर पाए दूरियां
खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां
कोई स्कूटर से उतरे कोई उतरे कार
पैदल कोई अपलक सड़क करता प्यार
शाम का बाजार राखी पर्व अँजोरिया
खींच लेतीं लटकती रंगीली डोरियां
झुंड का झुंड युवतियों की भरमार
राखियां मुस्कराती कर रहीं सत्कार
दुकान दब गई बहना मन आलोड़ियाँ
खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां
दृष्टि और राखियों में था गजब संवाद
मिठाई की दुकान पर था स्वाद विवाद
बहन की धूम थी भातृभाव गिलौरियां
खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां।
धीरेन्द्र सिंह
18.08.2024
18.27
पुणे का बाज़ार।
सुंदर रचना
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