गुरुवार, 28 मार्च 2024

पहल प्रथम

 होठों पर शब्द रहे भागते

अधर सीमाएं कैसे डांकते

हृदय पुलक रहा था कूद

भाव उलझे हुए थे कांपते


सामाजिक बंधनों की मौन चीख

नयन चंचल, पलक रहे ढाँपते

अपूर्ण होती रही रचनाएं सभी

साहित्य के पक्ष रहे जांचते


प्रणय की अभिव्यक्ति ही नहीं

व्यथाओं में भी, सत्य रहे नाचते

लिखते-लिखते लचक गए शब्द

बांचते-बांचते रह गए नापते


सम्प्रेषण अधूरा, कहते हैं पूरा

पोस्ट से हर दिन, रहे आंकते

सामनेवाला करे पहल प्रथम

भाव रहे लड़खड़ाते, नाचते।



धीरेन्द्र सिंह

28.03.2024

19.10

बुधवार, 27 मार्च 2024

मठाधीश


 तलहटी में तथ्य को टटोलना

सत्य के चुनाव की है प्रक्रिया

कर्म की प्रधानता कहां रही

चाटुकारिता बनी है शुक्रिया


है कोई प्रमाण कहे तलहटी

घोषणाएं ही विश्वस्त क्रिया

अनुकरण जयघोष का गुंजन

दोलायमान धूरी ही समप्रिया


चल पड़े पग असंख्य, लालसा

कथ्यसा ककहरा द्रुत त्रिया

रटंत के हैं महंत दिग दिगंत

अंतहीन कामनाओं का हिया


व्यक्ति आलोड़ित अचंभित चले

मठाधीश मन्तव्य लगे दिया

तथ्य भ्रमित शमित जले

शोर है पथ आलोकित किया।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2024

20.26

देह

 देह कहां अस्तित्ब है मनवा

आत्म प्रीति ही जग रीति

रूप की आराधाना है भ्रम

आत्मचेतना ही नव नीति


देह प्रदर्शन देता मोबाइल

दैहिक कामना ढलम ढलाई

रूप कहां की प्रेम रीति

आत्मचेतना ही नव निति


ना सोचो देह जशन है

बिना देह सजनी-सजन हैं

संवेदनाओं में गहन प्रतीति

आत्मचेतना ही नव प्रतीति


वर्षों तक हम रहे अबोले

भाव हृदय कहां बिन बोले

तत्व चेतना की ही स्थिति

आत्मचेतना ही नव प्रतीति।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2024

16.19

सोमवार, 25 मार्च 2024

मीते

 होली यह पढ़ हुई मालामाल

“मीते के गाल पर गुलाल”


"वाह! मन गयी अबकी होली"

प्रफुल्लित अंतर्चेतना तब बोली

भाव-भाव मिल रंग धमाल

“मीते के गाल पर गुलाल”


सोशल मीडिया पर की होली

रंग-ढंग सज होती है ठिठोली

गहन भाव शब्द हियताल

“मीते के गाल पर गुलाल”


गालों पर है गुलाल नृत्य

रंगोत्सव आता नहीं नित्य

प्रणय प्रेरणा कर गयी निहाल

“मीते के गाल पर गुलाल।“


धीरेन्द्र सिंह


25.03.2024

13.41

शनिवार, 23 मार्च 2024

ओ मनबसिया

 सब मनबतिया जग सारी रतिया, ओ मनबसिया

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


 अभिलाषाओं के आंगन में दृग हुलसित छाजन

हृदय उल्लसित तो करे कौन उसका वाचन

गहन तरंगों में ध्वनि भ्रमित भ्रमर नीदिया

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


सांखल खटकी द्वार की हिचकी पाहुन आए

ठग गई रात महक के कोरी खुद ही उफनाए

एक निपट सौ जुगत हार बैठीं सब नीतियां

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


मन के कितने रंग, उमंग अबीर और गुलाल 

पुलकित भाव रंग संग कपोल रचित भाल

ताल नई कुछ चाल नई अभिनव ठाढ़ी कृतियाँ

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया।


धीरेन्द्र सिंह


25.03.2024

08.12

शुक्रवार, 22 मार्च 2024

भोर में

 भोर में खुलती हैं पलकें

हृदय में आपका स्पंदन

पलक फिर बंद होती हैं


प्रणय का होता है वंदन


सुनती आप हैं क्या निस

नेह का उन्मुक्त निबंधन

स्मरण आपकी, आदत अब

सुगंधित, शीतल सा चंदन


उदित होतीं हृदय में क्रमशः

निज आलोक का समंजन

आप से ही प्रकाशित हूँ

तरंगित आपसे है सब नंदन


कब से बिस्तर है मुग्धित

भोर करती आपका अंजन

चिड़िया चहचहाती आप सी

करवटें ढूंढती आपका आलंबन


जगाती रोज हैं मुझको ऐसे

जैसे भोर का आपसे बंधन

बदन में टूटन अनुभूतियां भी

आप ही आप का है गुंजन।


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2024

04.39

गुरुवार, 21 मार्च 2024

नारी

 सघन हो गगन हो मनन हो

सहन हो समझ हो नमन हो


सदियों से प्रकृति में है बसेरा

देहरी के भीतर की हैं सवेरा

जीवन डगर पर भी चमन हो

सहन हो समझ हो नमन हो


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है नया

भारतीय संस्कृति में यह ना नया

नारी पर लेखन का क्यों चलन हो

सहज हो समझ हो नमन हो


अथक श्रमिक है परिवार की धूरी

आदि शक्ति वह ना कोई मजबूरी

बुद्धिमान, कीर्तिमान की अगन हो

सहज हो समझ हो नमन हो।


धीरेन्द्र सिंह

21.03.2024


20.05