मंगलवार, 22 अगस्त 2023

एक तुम हो

 

सुहाने होते मौसम में

भाव पुष्प खिल जाएं

युक्ति, चाह हो ऐसी

वाह! कहीं मिल जाएं

 

सदियों से यह कहते

प्रणय भाव झुक जाए

एक तुम हो ऐसे

कभी आए ? बिन बुलाए

 

तृष्णा क्यों रहे तृषित

नदियां बहती क्यों जाए

अंजुरी भर की बात

क्यों अधर बूंद तरसाए

 

इतना कहने का अधिकार

चुप भी ना रहा जाए

सहने को कई और

जीवन भी यही दर्शाए।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.08.2023

12.41

रविवार, 20 अगस्त 2023

फोटो

 कविताओं को पढ़कर

दृष्टि पहुंचती है

अंतिम पंक्ति पर,

नीचे छपा रहता है

रचनाकार का फोटो,

पाठक मन ढूंढता है

काव्य भाव

प्रकाशित रचनाकार के

चेहरे पर,

पठित भावनाएं

बंजर नजर आती है,

जिज्ञासा छटपटाती है

और 

कविता मर जाती है।


धीरेन्द्र सिंह

20.08.2023

15.15

शनिवार, 12 अगस्त 2023

झूठे

प्यार कहां टूटता रिश्ते हैं टूटे
भूल गई झूठी बोलें हर झूठे

चाह के हर शब्द, लगें प्रारब्ध
कितनी हरकतें, कर रहीं स्तब्ध
भावनाएं वहीं, हां तुम हो छूटे
भूल गई झूठी बोलें हर झूठे

कौन नयन, दरस नव बसाए
मन हर्षाए पर लोगों से छुपाए
तौर-तरीके संग समय ले अनूठे
भूल गई झूठी बोले हर झूठे

प्रीत, प्रणय, प्यार होता कहां उन्मुख
दर्पण से बोलें छुप हो सम्मुख
क्रम किसको याद, कौन कब छूटे
भूल गई झूठी बोले हर झूठे।

धीरेन्द्र सिंह
12.08.2023
13.03

हो जाएंगे हताश

 देह के द्वार पर प्यार की तलाश

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


एक झंकार पकड़ती हैं अनुभूतियां

भाव फ़नकार में मिलें यह रश्मियां

मुक्त गगन है नहीं, यह बाहुपाश

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


जीत कैसी हार कैसी और दबदबा

संघर्ष की फुहार देता इसे बज़बजा

दबंगता से कब हुआ, कोमल विन्यास

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


यह मुंडेर वह मुंडेर क्यों री गौरैया

प्रकृति है या प्यास,क़ उजबक खेवैया

एक ही मुंडेर पर टिकती नहीं आस

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


ध्यान है, सम्मान है, अभिमान है प्यार

विविधता मन में है, क्यों विविध यार

द्रवित, दमित होगा यह भ्रमित उल्लास

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2023

07.06

बुधवार, 19 जुलाई 2023

विरह गीत

मुझसे मुझको कहने का अधिकार

छीन लिया कैसे वह, दब प्रतिकार

स्व की स्वरांजलि, नव भाव लिए

परकाया समझा था, कब स्वीकार


वातायन था मन, कलरव गुंजित

कुहुक बोल थे मिश्रित, रचि श्रृंगार

तोड़ दिए क्यों रहन सभी बन लाठी

परकाया समझा था, कब स्वीकार


रूप आकर्षण और नव देह मोह

ना बिछोह, दुःख ना, चीत्कार

चुपके से गहि मौन सिधारे

परकाया समझा था, कब स्वीकार


बदन दौड़ पर मन का ठौर यहीं

व्यक्तित्व गूंथ, अस्तित्व चौबार

बदले, जैसी हो बरसती बदरिया

परकाया समझा था, कब स्वीकार


सावन में डोले, झुलसी स्मृतियां 

बोले क्या मन, क्या अब दरकार

यह छल बोलूं क्यों, कि भूल गए

परकाया समझा था, कब स्वीकार।


धीरेन्द्र सिंह


19.07.2023

19.57

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

सावन

 मेघों की मस्तियाँ व्योम भरमा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


वनस्पतियों में अंकुरण का जोर है

पहाड़ियां कटें संचरण में शोर है

मेरी बालकनी देख सब भरमा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


सावन में प्रकृति ही है निज प्रेमिका

पावन परिवेश में गूंजे है गीत प्रेम का

हृदय तंतुओं में रागिनी यूं समा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


निज अकेला बैठ प्रकृति निहार रहा

हवाओं की मस्ती या कोई पुकार रहा

पुष्प, पत्ती में निहत्थी बूंद नरमा गयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी


हर किसी को ना आए समझ हया

हर कोई बूझे ना सावन मांगे दया

सुप्त भाव तरंगे उभर नव अरमां भयी

आया सावन कि सलोनी शरमा गयी।


धीरेन्द्र सिंह

19.07.2023

08.15

मंगलवार, 11 जुलाई 2023

चितेरा

 एक सुंदर एहसास सा तेरा

अपरिभाषित होने का घेरा

सिर्फ अनुभूतियों में ध्वनित

बोल न कौन तेरा है चितेरा


धरती, अम्बर, बादल, चांद

यह सब छुपने के हैं मांद

मौन स्पंदन वर्तमान का घेरा

बोल न कौन तेरा है चितेरा


हवा, शाम, रातों की अदाएं

तू दूर तेरा ख्वाब हैं जगाए

प्रतिध्वनियों का गुंजित घेरा

बोल न कौन तेरा है चितेरा


होना तुम्हारा क्या मेरा जीवन

दर्द विरह हृदय का सीवन

क्यों रह-रह बोले बाहों का घेरा

बोल न कौन तेरा है चितेरा।


धीरेन्द्र सिंह

12.07.2023

06.40