भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
कविताओं को पढ़कर
दृष्टि पहुंचती है
अंतिम पंक्ति पर,
नीचे छपा रहता है
रचनाकार का फोटो,
पाठक मन ढूंढता है
काव्य भाव
प्रकाशित रचनाकार के
चेहरे पर,
पठित भावनाएं
बंजर नजर आती है,
जिज्ञासा छटपटाती है
और
कविता मर जाती है।
धीरेन्द्र सिंह
20.08.2023
15.15
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