मंगलवार, 29 जून 2021

व्हाट्सएप्प की नगरवधुएं


वह व्हाट्सएप्प पर

सक्रिय रहती है

प्रायः द्विअर्थी बातें

लिखती हैं 

और चले आते हैं

उसके चयनित पुरुष

टिप्पणियों में

रुग्ण यौन वर्जनाओं के 

लिए शब्द

जिसपर वह अवश्य चिपकाती है

अपनी मुस्कराहट

एक रूमानी आहट,

कोई कुछ भी बोल जाए

उसे फर्क नहीं पड़ता

जिसे चाहती है वही

उसके व्हाट्सएप्प में रहता,

पुस्तकें हैं उसे मिलती

चयनित पुरुषों के

प्रेम और यौन उन्माद की

कथाओं की पुस्तकें,

सभी पुरुष होते हैं

तथाकथित साहित्यिक

छपाए पुस्तकें

अपने पैसों से

खूब होती है गुटरगूं

इन नकलची लेखक जैसों में,

हिंदी लेखन की मौलिकता

कुचल रहीं यह नगरवधुएं

यदि मौका मिले तो पढ़िए

कैसे हैं पुरुष इन्हें छुए।


धीरेन्द्र सिंह


शुक्रवार, 25 जून 2021

तड़पे प्यास

 यह उम्र गलीचा

वह मखमली एहसास

समंदर ने कब कहा

पानी में तड़पे प्यास।


धीरेन्द्र सिंह


वह आई थी

वह आई थी
 हथेलियों में भर भावनाएं 
मिलकर उसे पुष्प बना दिए 
उसने कहा
 इन फूलों से सजाना है आसमान 
मैंने कहा बड़ा है व्योम से 
मन का आकाश बसा दो 
अपनी फुलवारी 
वह नहीं मानी 
भौरों के झुंड में 
तलाशने लगी आसमान। 

 धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 23 जून 2021

प्यार मर गया

 प्यार 

कोरोना काल में

काल कवलित,

दिलजलों ने कहा

कैसे मरा,

स्वाभाविक मृत्यु

या मारा किसी ने,

कौन समझाए

प्यार मरता है

अपनी स्वाभाविक मृत्यु

भला 

कौन मार सका ,

प्यार तो प्यार

कुछ कहें

एहसासी तो कुछ आभासी,

भला

कौन समझाए

दूर हो या पास

होता है प्यार उद्गगम

एहसास के आभास से,

मर गया

स्मृतियों के बांस पर लेटा

वायदों का ओढ़े कफन

उफ्फ़ कितना था जतन।


धीरेन्द्र सिंह


सोमवार, 21 जून 2021

टहनियां

 डालियां टूट जाती हैं

लचकती हैं हंस टहनियां

आप समझे हैं समझिए

कैसी इश्क की नादानियां


एक बौराई हवा छेड़ गई

पत्तों में उभरने लगी कहानियां

टहनियां झूम उठी प्रफुल्लित

डालियों में चर्चा दिवानियां


गुलाब ही नहीं कई फूल झूमे

फलों को भी देती हैं टहनियां

डालियां लचक खोई ताकती

गौरैया आए चहक करे रूमानियां।


धीरेन्द्र सिंह

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

 अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस आज

होता सहज नहीं विश्वास

कल तक अनदेखी विद्या का

आज सकल सिद्ध है राज


योगी रामदेव की महिमा मुस्काए

एक चना का है यह अंदाज

एक ब्रह्म एक ही आत्मा एकं अहं

विस्मित निरखे परवाज


अथक परिश्रम अथक सहयोग

फला_फूला विस्तृत हुआ योग

भारत विश्व योग गुरु बन स्थापित

संचालित नित घर_घर यह योग।


धीरेन्द्र सिंह

शनिवार, 19 जून 2021

फेसबुकिया बीमारी

 मैं नहीं जा पाता हूं

सबकी पोस्ट पर

देने अपनी हाजिरी

कभी टिप्पणियां

अक्सर लाइक,

यह भीड़ तंत्र

साहित्य की 

फेसबुकिया बीमारी है

कल तुमने किया लाइक

तो आज मेरी बारी है,

मन की रिक्तता

नहीं होती जब संतुष्ट

भावों को अभिव्यक्ति दे

तब भागता है मन

भीड़ की ओर

लोग आएं और मचाएं

निभावदारी का शोर,

नहीं गाता हूं 

दूसरों के लिए

बेमन गाने, टिप्पणियां, लाइक

भ्रमित प्रशंसा काल में

साहित्य की धूनी

बुला लेती है खुद ब खुद

समय के एक भाग को।


धीरेन्द्र सिंह