डालियां टूट जाती हैं
लचकती हैं हंस टहनियां
आप समझे हैं समझिए
कैसी इश्क की नादानियां
एक बौराई हवा छेड़ गई
पत्तों में उभरने लगी कहानियां
टहनियां झूम उठी प्रफुल्लित
डालियों में चर्चा दिवानियां
गुलाब ही नहीं कई फूल झूमे
फलों को भी देती हैं टहनियां
डालियां लचक खोई ताकती
गौरैया आए चहक करे रूमानियां।
धीरेन्द्र सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें