मंगलवार, 4 जनवरी 2011

इस तरह शाम ने

इस तरह शाम ने जुल्फों में छुपाया तुमको
चांद भी रात पूरी भागता रहा ना पाया
बादलों ने भी की तरफदारी शाम की खूब
चांदनी छुपती रही मिल ना पाया साया

किसी झुरमुट से झींगुर ने संदेशा दिया
तट सरोवर कल शाम था इठलाया
जुगनुओं ने घेर रखा था सिपाही की तरह
मखमली एहसास लिए था कोई आया

हवा ने बिखेरा तुम्हारी जुल्फों की खुशबू

पत्तों ने उड़ कहा कल कोई था गुनगुनाया
बीते कल की गूंज में आज नज़र ना आया
कोशिशें नाकाम रही शाम ने खूब छकाया

तुम्हारे वादों पर ऐतबार जो दिल ने किया
फिर किसी वादे पर यकीन ही ना आया
कदम फिर चले पड़े उम्मीद से लिपटे
फिर भी ना मिल सकी हसीन सी माया


धीरेन्द्र सिंह



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष

आज नूतन नव किरण है, तुम कहां
मैं हूं डूबा इक गज़ल में, गुम जहां

कल जो बीता वह ना छूटा राग से
अब भी अनुराग, अभिनव कहकशां

सूर्य रश्मि पीताम्बरी में लिपट धाए
दौड़ता है मन यह आतुर बदगुमां

प्रीति उत्सव संग तरंग, नर्तन करे उमंग
गीत जो बस गए, गुनगुनाए यह ज़ुबां

कौन सी कोंपल नई, उभरी है अबकी
एक शबनम मचल रही, हो मेहरबां

एक संभावना संग, सपने नए मचल उठे
यथार्थ को चरितार्थ करें, मिलकर यहां.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

एक दिन

ऑखें ठगी सी रह गईं
क्या आज कुछ कह गईं
परिधान की नव प्रतिध्वनियॉ
तन सम्मान की सरगर्मियॉ

शबनम भी आज पिघल गई
भोर बावरी सी मचल गई
मुख भाव की यह अठखेलियॉ
मुखरित सौंदर्य की पहेलियॉ

पुरवैया क्या यह कह गई
भावनाएं लग रही नई-नई
कुछ भी ना है अब दरमियॉ
भावना की पंखुड़ीली नर्मियॉ.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

चॉद,चूल्हा

चॉद, चूल्हा और चौका,चाकर
क्या पाया है इसको पाकर
खून-पसीना मिश्रित ऑगन में
लगती है वह अधजल गागर

रूप की धूप में स्नेहिल रिश्ते
चले वहीं जहॉ चले हैं रस्ते
घर की देहरी डांक चली तो
लगता घर आया वैभव सागर

चाह सुगंध की चतुर सहेली
गॉवों, कस्बों की अजब पहेली
शहरी नारी की चमक की मारी
करती संघर्ष जो मिला है पाकर

नारी गाथाओं की यह अलबेली
खिली, अधखिली पर है चमेली
सृजनधर्मिता आदत है जिसकी
इनकी भी सुध ले कोई आकर.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

बाजारवाद-बहाववाद

ज़िंदगी हर हाल में बहकने लगी
कठिन दौर हंस कर सहने लगी
मासिक किश्तों में दबी हुई मगर
कभी चमकने तो खनकने लगी

बाजारवाद में हर दर्द की दवा हाज़िर
बहाववाद ले तिनके सा  बहने लगी
क्रेडिट कार्ड करे पूरी तमन्नाएं अब
ज़िंदगी हंसने लगी तो सजने लगी

सूर्य सा प्रखर रोब-दाब-आब सा
चांदनी भी संग अब थिरकने लगी
लोन से लिपट आह, वाह बने
कभी संभलने तो बहकने लगी

तनाव, त्रासदी से ऊंची हुई तृष्णा
दिखावे में  ढल ज़िंदगी बिकने लगी
रबड़ सा खिंच रहा इंसान अब
ज़िंदगी दहकने तो तड़पने लगी.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

प्याज़

नए सफर की ओर चली
लेकर सरपर अपना ताज
नज़र-नज़र को धता बताकर
उछल रही है प्याज

हॉथों से छू भी ना सकें
रसोई को आए लाज
आंसू बिन अंखिया पथराए
बहुत छकाए प्याज

ऊंची उठती फिर आ जाती
जैसे हो सांजिंदे की साज
मगन,मृदुल जिव्हा हो जाती
पाकर मनचली प्याज

मंडी, ठेले के सब मेले
मिल मांगे दुआएं आज
थाली का माली मिल जाए
सबकी हो जाए फिर प्याज.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 19 दिसंबर 2010

मन चिहुंका

शब्दों को होठों से भींचकर
भावना की सीपी को मींचकर
कल्पनाएँ व्यथा की मीत हुईं
बात-बेबात नाराज़गी की रीत हुई

धड़कनों से धड़कनों को खींचकर
चितवन से उपवन को सींचकर
गीत की अठखेलियॉ मन-मीत हुईं
लहरों से लहरों की जीत हुई

आहट से मन को मीत कर
बासंती सरगम की प्रतीत कर
बिरहन राधा सी पीर हुई
चाहत यमुना की तीर हुई


अकुलाहट को पार्श्व में खींचकर
राहत को आहत से जीतकर
मन तरंग रसमयी झंकार हुई
मन चिहुंका फिर वही टंकार हुई.
 

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
 शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.