मंगलवार, 23 नवंबर 2010

चाँद, चौका, चांदनी

चाँद चौके बैठ गया चांदनी लाचार
बेपहर का भोजन यह कैसा अत्याचार
आसमान हलक गया फैलाया अरुणाई
सितारों ने निरखने को बांध ली कतार


चंदा बोला चांदनी मैं हूँ तेरा भरतार
छोड़ न अकेला मुझे भूख के मझधार
आसमान ने बादलों से किया निवेदन
घेरो न चंदा को है यह अनोखा प्यार


चांदनी ने कहा कैसी जिद यह बारम्बार
आप हठीले हो रहे टूट रहा ऐतबार
आसमान मौनता में लिए एक गुबार
चाँद में देखे बांकपन का नया खुमार


चाँद बोला पेट भर कर ले रहे लोग फुफकार
पेट भर कर सोने को मेरा भी जी रहा पुकार
चांदनी में स्वप्न का सज रहा वहां संसार
मैं निसहाय सा न रह सकूं यहाँ लाचार


चांदनी हंस पड़ी सुन चाँद का यह विचार
भूख, चौका, चांदनी, और नींद का इकतार
बैठ चौका में बुनने लगी एक स्वाद नया
चाँद गुमसुम मुस्कराए बाँट अपना प्यार.

सोमवार, 22 नवंबर 2010

देह देहरी

देह देहरी पर क्यों बैठे बन प्रहरी
पंखुड़ी पर बूंद कुछ पल है ठहरी
अपलक क्यों हैं खुद को थकाईएगा
जड़वत रहेंगे या मन तक जा पाईएगा

कशिश है, तपिश है, सौंदर्य है, सिरमौर है
प्रीति की रीति यहीं मनभावन ठौर है
गुनने-बुनने में क्या दौर यह भगाईएगा
तट तक रहेंगे या मन भर गुनगुनाईएगा

सृष्टि सिमट जाती है  अनोखे आगोश में
बेसुध हो जाते हैं आते तो हैं होश में
बेखुदी में आप भी भरम और फैलाईएगा
एक-दूजे को समझेंगे या बरस जाईएगा

वेदना, संवेदना की जागृत यहीं संचेतना
उद्भव, पराभव का स्वीकृत यहीं नटखट मना
देह देहरी पल्लवन में कहॉ तक भटकाईएगा
प्रहरी रहेंगे या फिर मन हो जाईएगा.

रविवार, 21 नवंबर 2010

एक अर्चना निजतम हो तुम

सुंदर से सुंदरतम हो तुम, अभिनव से अभिनवतम हो तुम
आकर्षण का दर्पण हो तुम, शबनम से कोमलतम हो तुम:
ऑखों में वह शक्ति कहॉ जो, सौंदर्य तुम्हारा निरख सके
अप्रतिम मौन लिए मन में, स्नेह-नेह सघनतम हो तुम.

धीरे-धीरे धुनक-तुनक कर,शब्द तुम्हारे धवल, नवल नव
भाव बहाव का सुरभि निभाव, चॉदनी सी शीतलतम हो तुम:
मैं अपलक आतुर अह्लादित, पाकर साथ तुम्हारा निर्मल
तपती धूप की प्यास हूँ मैं, सावनी बदरिया गहनतम तुम.

जीवन जज्बा, किसका किसपर कब, अपनेपन का कब्ज़ा
मुक्त गगन सा खिले चमन सा, एक विहंग उच्चतम हो तुम
;

व्यक्ति-व्यक्ति का, मानव भक्ति का, सौंदर्य शक्ति की सदा विजय
रिक्ति-रिक्ति आसक्ति प्रीति की, एक अर्चना निजतम हो तुम.

धीरेन्द्र सिंह.

शनिवार, 20 नवंबर 2010

उड़ न चलो

उड़ न चलो संग मन पतंग हो रहा है
देखो न आसमान का कई रंग हो रहा है
एक तुम हो सोचने में पी जाती हो शाम
फिर न कहना मन क्यों दबंग हो रहा है

आओ चलें समझ लें खुद की हम बातें

कुछ बात है खास या तरंग हो रहा है
एक सन्नाटे में ही समझ पाना मुमकिन
चलो उडें यहाँ तो बस  हुडदंग हो रहा है

मत डरो सन्नाटे में होती हैं सच बातें

मेरी नियत में आज फिर जंग हो रहा है
ऊँचाइयों  से सरपट फिसलते खिलखिलाएं हम
देखो न मौसम भी खिला भंग हो रहा है

आओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा

फिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
एक शाम सजाने का न्योता ना अस्वीकारो
बिखरी है आज रंगत तन सुगंध हो रहा है.

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

कीजिए सबको साधित

आधुनिकता भव्यता का शीर्ष मचान है
परंपराएं मुहल्ले की लगे एक दुकान है
द्वंद यह सनातनी फैसला रहे सुरक्षित
इसलिए हर मोड़ का निज अभिमान है

सोच का खुलापन लगे विकृत ज्ञान है
अधखुले सत्य का होता सम्मान है
रोशनी के लिए होता पूर्व लक्ष्यित
इतर दिशा दर्शाना महज़ अज्ञान है

संस्कृति कटघरे में फिर भी गुमान है
बस धरोहर पूंजी शेष मिथ्या भान है
ज्ञान कुंठित हो रही प्रगति बाधित
भूल रहे भारत इंडिया मेरी जान है

अपनी-अपनी डफली अपना गान है
चटख रही धूरी दिखता आसमान है
आप उठिए कीजिए सबको साधित
भारत का गौरव लिए स्वाभिमान है.

अपनत्व

लिए जीवन उम्र की भार से
एक हृदय ईश्वरी पुकार से
जीवन के द्वंद्व की ललकार से
बुढ़ापे को दे रहा अमरत्व है

ले आकांक्षा स्वप्निल सत्कार से
एक मन आंधियो के अंबार से
लिप्त जीवन के बसे संसार से
वृद्धता मचले जहां ममत्व है

दृष्टि में सृष्टि की ख़ुमार से
तन की लाचारी भरी गुहार से
भावनाओं को मिली बुहार से
कृशकाया से छूट रहा घनत्व है

अंजुरी में छलकते दुलार से
आंगन के कोलाहली बयार से
कुछ नहीं बेहतर परिवार से
बुढ़ौती का यही अपनत्व है

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

अबूझा यह दुलार है

मन के हर क्रंदन में, वंदनीय अनुराग है
नयन नीर तीर पर, सहमा हुआ विश्वास है,
अलगनी पर लटका-लटका देह स्नेह तृष्णगी
ज़िंदगी अलमस्त सी, लगे कि मधुमास है

घटित होती घटनाओं का सूचनाई अम्बार है
इस गली में छींक-खांसी, उस गली बुखार है,
प्रत्यंचा सा खिंचा, लिपा-पुता हर चेहरा
ज़िंदगी फिर भी धड़के, गज़ब का करार है

शबनमी तमन्नाओं में, नित ओस बारम्बार है
स्वप्न महल बन रहा, खोया-खोया आधार है,
आसमान को पकड़ने को, थकन चूर कोशिशें
ज़िंदगी फिर भी उड़े, अबूझा यह दुलार है