बुधवार, 24 जनवरी 2024

दिल एक

 

कोई तो बताए एक से अधिक प्यार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

पंखुड़ी की ओस में लिपट भावनाएं

सुगंध सी प्रवाहित होकर कामनाएं

पलकों से उठा चूनर करें अभिसार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

रिश्ता तोड़ गयीं छोड़ गयीं महारानी

क्या यह उचित ढूंढें एक देवरानी

प्यार का भी अंग होता है प्रतिकार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकार

 

माना कि बेखुदी मैं जाते हैं लट उलझ

यह एक दुर्घटना है प्यार ना सहज

दूसरों में ढूंढते एक उसी की झंकार

दिल एक कैसे अनेक का अधिकासर।

 

धीरेन्द्र सिंह

24.01.2024

22.58

रविवार, 21 जनवरी 2024

रामजन्मभूमि

 

झंडों ने सड़कों को इजाजत दे दी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

आक्रमणकारी मुगल वंश का था दंश

हमसे ही हमारा चुरा लिया था अंश

मानसिक पहल ने वही इजाजत दे दी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

रा मलला मंदिर सनातन का है गर्व

आततायियों ने सोचा बंद हो यह पर्व

सर्वोच्च न्यायालय ने राम महारत देखी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

धार्मिक सौहार्द्रता भारत के रग बसा

अयोध्या में ही भव्य मस्जिद रचा

सनातन देता हर धर्मों को नव वेदी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली

 

22 जनवरी वर्ष 24 का है इतिहास

साक्ष्य विश्व होकर देखे सनातनी आस

आस्था ने विस्थापित को मात दे दी

भक्ति दे दिया और इबादत ले ली।

 


धीरेन्द्र सिंह

21.01.2024

23.25

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

सुतृप्ता, अतृप्ता

 सुतृप्ता, अतृप्ता, स्वमुक्ता


सुतृप्ता

एक नारी

एक रचना

एक कृति

एक वृत्ति


अतृप्ता

एक क्यारी

मति दुधारी

नया तलाशती

निस संवारती


स्वमुक्ता

एक अटारी

उन्नयनकारी

भाव चित्रकारी

ऋतु न्यारी


सुतृप्ता, अतृप्ता, स्वमुक्ता

जीवन इनसे चलता, रुकता

सुतृप्ता, स्वमुक्ता निधि सारी

अतृप्ता घातक साहित्य सूखता


अतृप्ता से बचने का हो उपाय

साहित्य हरण का लिए स्वभाव

लील जाए सर्जक और सर्जना

इसलिए लिखा, हो साहित्य बचाव।


धीरेन्द्र सिंह


11.01.2024

17.01

नया क्या खिलेगा

 मुझे इतना पढ़ ली नया क्या मिलेगा

नया ना मिला तो नया क्या खिलेगा


प्रहसन नहीं है प्रणय की यह डगर

सर्जन नहीं है अर्जन की कहां लहर

नवीनता में ही नव पथ्य खुलेगा

नया न मिला तो नया क्या खिलेगा


एक आदत हो जाए तो प्रीत पुरानी

एक सोहबत सहमत तो गति वीरानी

हर कदम बेदम ना नई राह चलेगा

नया न मिला तो नया क्या खिलेगा


जीवन में मनुष्य होता नहीं है रूढ़

धरा और व्योम वही, विभिन्नता आरूढ़

भाव पंख खुले तो वही सृष्टि रंगेगा

नया न मिला तो नया क्या खिलेगा।


धीरेन्द्र सिंह


12.01.2024

14.48

गुरुवार, 11 जनवरी 2024

स्वांग है

 पहल का प्रथम प्रहर अनुराग है

शेष तो बस संतुलित स्वांग है


सत्य प्रायः रह जाता है अबोला

असत्य ही प्रखर होकर है बोला

सामाजिकता में निर्मित ऐसा प्रभाग है

शेष तो बस संतुलित स्वांग है


भाव उल्लेख की कई अभिव्यक्तियां

यही आहत करतीं सरगमी नीतियां

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही राग है

शेष तो बस संतुलित स्वांग है


चल पड़ा जो राह विश्वास संग एकल

समाज तो क्या विश्व हुआ बेकल

रचित गठित ही सामाजिक मांग है

शेष तो बस संतुलित स्वांग है


नाद के निनाद में क्यों विवाद

भाव विभोरता पर क्यों आघात

हृदय पूजित का ही भान है

शेष तो बस संतुलित स्वांग है।


धीरेन्द्र सिंह


12.01.2024

07.11

प्यार का टर्मिनस

 प्रणय का है होता किस उम्र में सुयश

कोई तो बता दे प्यार का टर्मिनस


बहुत ढूंढने पर प्यार तथ्य न मिला

लोग कहते है जारी वही सिलसिला

अंदाज अपने-अपने, अदाओं की कसक

कोई तो बता दे प्यार का टर्मिनस


कुछ कहें प्यार बंद, भक्ति को हो लिया

प्यार समाहित उनकी भक्ति की बोलियां

मार्ग कोई भी हो प्यार चाहे चहक

कोई तो बता दे प्यार का टर्मिनस


एक बंधन लगा चंदन, है मन वंदन

राह कोई भी हो प्यार का हो क्रंदन

मन मारकर कुछ चुप ले कश्मकश

कोई तो बता दे प्यार का टर्मिनस


स्व को मुक्त करने के सब प्रयास

स्व मुक्त उड़ान हेतु कब से उजास

प्यार लौकिक-अलौकिक लिए अमृत रस

कोई तो बता दे प्यार का टर्मिनस।


धीरेन्द्र सिंह


11.01.2024

16.04

बुधवार, 10 जनवरी 2024

तुम में

 केशों में तुम्हारे शब्दों को सजाकर

भावनाओं की कंघी से केश संवारकर

कुछ गीत प्रणय के कर दूं तुम्हारे प्राण

आत्मा की आत्मा से नींव बनाकर


भावनाओं पर भावनाओं को बसाकर

तिनके सा बह चले जिंदगी नहाकर

इतनी आतुरता तो हुई न अकस्मात

क्या-क्या गए सोच एक तुमको चुराकर


मन से उठे गीत होंठ देने लगे शब्द

अंगड़ाईयों को यूं तनहाईयों में गाकर

तुमको ही लिपटा पाता शब्दों में सुगंध

एक मदहोशी की खामोशी में छुपाकर


यह प्रवाह प्रणय या व्यक्तित्व तुम्हारा

क्यों लगने लगा प्रीत तुम्हारा चौबारा

निवेदित नयन के आचमन कर लिए

तब से लगने लगा तुम में जग सारा।


धीरेन्द्र सिंह


10.01.2024

23.36