बुधवार, 6 अप्रैल 2022

शब्द

 सुनो प्रयास तज्ञ शब्द संचयन

समेट पाओ क्या स्मिति नयन

उठाए भार अभिव्यक्ति गमन

रंग पाओगे मुझ जैसे प्रीत चमन


मेरा सर्वस्व ही मेरा निजत्व है

शब्द कहो कहां तुम्हारा है वतन

मेरी अनुभूतियां परिकल्पनाएं 

शब्द कर पाओगे हूबहू जतन


आत्मा मेरी जुड़े आत्मा उसकी 

धरा की कोशिशें ठगा सा गगन

बहुत बौने, बहुत अधूरे हो शब्द

मेरी आत्मा मेरी आराधना, नमन।


धीरेन्द्र सिंह

06.04.2022

16.08

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

जैसे कश्मीर

 जब टूटा सब टूटा और टूटा धीर

अब लगता षडयंत्र जैसे कश्मीर


मां दुर्गा की प्रेरणा अबकी पुकार

नवरात्र में चिंतन-मनन में सुधार

भंवर भरोसे क्या बहें देखें तीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


इतिहास पढ़ने से क्या प्राप्ति रही

धारा ठीक चली कब उल्टी बही

कलम बिक गयी सोच टूटी प्राचीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


पीढ़ी दर पीढ़ी चढ़ती गलत सीढ़ी

रहा सुलगता सत्य रहा जैसे बीड़ी

वर्तमान प्रांजल हो बन रहा अधीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर


अपना सत्य सौम्यता ठहरी है पीर

अब लगता षड्यंत्र जैसे कश्मीर।


धीरेन्द्र सिंह

02.04.2022

13.35

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

जीवन की थाह

 डबडबा जाती हैं आंखें

क्या कहूँ, कैसे कहूँ

बस लगे मैं बहूँ;

एक प्रवाह है

बेपरवाह है

जीवन की थाह है;

बस हुई मन की बातें

डबडबा जाती हैं आंखें।


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2022

अपराह्न 01.40

गुरुवार, 24 मार्च 2022

अस्तित्व

 अखबार सी जिंदगी

खबरों सा व्यक्तित्व

क्या यही अस्तित्व ?


लोग पढ़ें चाव से

नहीं मौलिक कृतित्व

क्या यही अस्तित्व ?


संकलित प्रभाव से

उपलब्धि हो सतीत्व

क्या यही अस्तित्व ?


प्रलोभन मीठी बातें

फिर यादों का कवित्व

क्या यही अस्तित्व ?


तिलांजलि असंभव है

तिलमिलाहट भी निजित्व

क्या यही अस्तित्व ?


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2022

पूर्वाह्न 08.00

बंजरता

 बरसते नभ से धरा विमुख
प्रांजलता वनस्पतियों में भरी
मेघ के निर्णय हुए नियति
प्रकृति भी है खरी-खरी

टहनियों पर मुस्कराते पुष्प हैं
पत्तियां झूम रहीं, हरि की हरी
उपवन सुगंध में उनकी ही धूम
भ्रमर अकुलाए कहां है रसभरी

पहले सा कुछ भी नहीं अब
बंजरता व्यग्र, कहां वह नमी
नभ का दम्भ या धीर धरा
विश्व की पूर्णता है लिए कमी।

धीरेन्द्र सिंह
24.03.2022
17.15

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

युद्ध

 यूक्रेन 

हिम्मत और हौसला

रूस

आधिपत्य का फैसला,


याद आया महाभरत

युद्ध कौशल की महारत

रणनीतियों का जलजला

यह विश्व कहां चला,


प्रखर वही व्यक्तित्व

है जिसका शीर्ष अस्तित्व

दूरदर्शी ना मनचला

रूस विश्व की कला,


वसुधैव कुटुम्बकम

विस्तारवाद का कदम

पढ़ाने की चतुर कला

भारत का हो भला,


बदल रही परिस्थितियां

अधूरा इतिहास दरमियाँ

कितना बहा और लगे गला

त्यजन, काल को गले लगा,


यूक्रेन

युद्ध कौशल आयातित

रूस

भारत भी सोचे कदाचित।


धीरेन्द्र सिंह

23.02.2022