गुरुवार, 4 जुलाई 2024

सांझ सूरज

 किसी के सांझ की पश्चिमी सूरज लालिमा

पलक आधार बन कर रहें मुग्धित तिरोहित

पवन कुछ शीतल झोंके से है रही ढकेल 

श्याम परिधान में आगमन श्यामल पुरोहित


ठगे से रह गए हतप्रभ देखकर क्षितिज 

हृदय भाव श्रृंगारित सांझ आभा आधारित

आखेटक ही लेते जीत विचरती वन उमंगे

नयन रहा समेट चुपचाप परिवेश प्रसारित


कहां कब कौन छोड़े साथ हो अकस्मात

चलन राह पर होती भावनाएं प्रताड़ित

दम्भ का खम्भ कहे हम ही हरदम हम 

सांझ सूरज कहे प्यार न होता निधारित।


धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

10.53




टी 20

 टी20 विश्वकप वर्ष 24 विजेता नाबाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


एकल प्रदर्शन ले अपने कौशल का साथ

दीवानगी इतनी कि प्रभावित दर्शक हाँथ

कभी नाम खिलाड़ी तो भारत जिंदाबाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


कौन था सजाया रहस्य क्रिकेट सुलझाया

प्रतिभाओं को माँज दिव्य ऊर्जा जगाया

बुद्ध की एकाग्रचित्तता राम सा युद्ध नाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


मुंबई मरीन ड्राइव असंख्य जनबल सुहाई

नवांकुर क्रिकेट प्रतिभा बैट बॉल अमराई

अपार भीड़ फिर आए ऐसे इसके भी बाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद।


धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

09.37



बाधित

 केबल ही बंद कर दिए तरंगें बाधित

यह श्राप नया है प्रौदयोगिकी बाधित

 

कर दिए ब्लॉक मनोभाव की शुष्नुमाएं

नाड़ियां स्पंदित भाव सोच कहां जाएं

केबल लगे केंचुल सनक में सम्पादित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित

 

बेतार का तार कई जीवन रहा संवार

आप केबल ठेपी परे, अबोला है तार

ताक-झांक चहुंओर निःशब्द मर्यादित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित

 

हर पर्दे से सशक्त प्रौद्योगिकी का पर्दा

अश्व असंख्य मनोभाव के उडें ना गर्दा

अदृश्य अलौकिक बन मन में अबाधित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित।

 

धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

07.22

बुधवार, 3 जुलाई 2024

कहानी

 मुझको अपने वश कर ले, जिंदगानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

पतझड़ में रुनझुन, खनके सावन गीत

वर्षा रिमझिम में, विरह तके मनमीत

अक्सर कहते लोग, मुझमें बदगुमानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

करधन में लगा है उसका ही जपगांठ

बहुत छुपाया लग न जाए, कोई आंख

सांस गहन होती, मगन नमन जिंदगानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

तन्मय मन उपवन में, दीवानगी जतन

क्यों जिंदगी गुनगुनाती होती ना सहन

जीवन दे दीवानगी व्योम धरा मनजानी

गालियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी।

 

धीरेन्द्र सिंह

03.07.2024

06.18



सोमवार, 1 जुलाई 2024

कविताएं

 पीड़ा है बीड़ा है कैसी यह क्रीड़ा है

मन बावरा हो करता बस हुंकार

पास हो कि दूर हो तुम जरूर हो

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार

 

अगन की दहन में आत्मिक मनन

प्रेमभाव वृष्टि फुहारों में कर जतन

जीव सबका एक सबपर है अधिकार

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार

 

चाह की आह में प्रणय आत्मदाह

डूबन निरंतर पता न चले थाह

एक लगन वेदिका दूजा मंत्रोच्चार

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार।

 

धीरेन्द्र सिंह

02.07.2024

07.11

हिंदी-उर्दू

 हिंदी एक भाषा एक सभ्यता एक संस्कृति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति

 

भाषा का विकास, विन्यास, अभ्यास जरूरी

विभिन्न हिंदी साहित्य इसकी हैं तिजोरी

विश्व चयनित श्रेष्ठ संस्कृत भाषा से उन्नति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति

 

विपुल हिंदी साहित्य इसकी श्रेष्ठता प्रमाणित

अब भी क्यों कहें सौंदर्य हिंदी उर्दू आधारित

फारसी के शब्दों से हिंदी ही कहें उर्दू गति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति

 

हिंदी फिल्मों के गीत या उनके हों संवाद

उर्दू भाषा ज्ञानी लिखें हिंदी का ले ठाट

सूफी साहित्य हिंदी गहि साहित्य संप्रति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति।

 

धीरेन्द्र सिंह

01,.07.2024

15.31