रविवार, 19 मई 2024

चिंतन

 

जो जितना पढ़ेगा

वह उतना भिड़ेगा

अंधकार दूर कर

ज्योति वह तिरेगा

 

पुस्तक मात्र नहीं

दृष्टि जो मढ़ेगा

पुस्तक से बेहतर

विचार वह नढ़ेगा

 

धार्मिक पुस्तकें विशिष्ट

चिंतन पढ़ फहरेगा

शेष जीवन दिखलाता

समझा वही बढ़ेगा

 

सीख नहीं क्षोभ

दर्द ऐसे कहरेगा

भाषा, चिंतन, अभिव्यक्ति

भविष्य को तरेगा।

 

धीरेन्द्र सिंह

19.05.2024

13.53



शनिवार, 18 मई 2024

काव्य रचा शब्द

 

हर शब्द कहा शहद भरा छत्ता है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

शब्द के ऊपर रहें मोटी बतियां

शब्द भीतर भावपूरित नदियां

रचना भीतर पान चटक कत्था है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

कोई भी रचना न शब्द का पिरामिड

रचना लचीली न भाव रखे अडिग

रचनाकार अपनी धुन का सत्ता है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

भावनाओं के जमघट में शब्द साधना

कामनाओं के पनघट में वक़्त बांधना

लेखन योगभाव टहनी उगा पत्ता है


स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है।

 

धीरेन्द्र सिंह

18.05.2024

21.00

शुक्रवार, 17 मई 2024

आप

 किसी सड़क पर रोज आप निकलती होंगी

किसी तरह ट्रैफिक लड़खड़ाती चलती होगी

आपको मालूम नहीं आपकी हर अदाएं

हवाएं छूकर हर शख्स दिल धड़कती होंगी


आप मासूम हैं आपको मालूम भी नहीं

नज़र एक बार देख कर मचलती होंगी

सौम्य, शालीन अब मिलते ही कहाँ हैं

आहें तड़पती आप पर ही ढलती होंगी


एक उम्र जीने का हुनर आपने बांटा

एक अदा महफिलों सी ठहरती होगी

हर नज़र यूं भी आप तक न पहुंचे

संवेदनाएं जीवित वही लहरती होंगी


सौंदर्य उम्र के खूंटे पर, बंधा कब है

जिंदगी प्यार में यूं ही उभरती होगी

आपसे प्यार हो चुका कब से, उम्दा

आपको मालूम भी नहीं, डरती होंगी।


धीरेन्द्र सिंह

17.05.2024

17.21



गुरुवार, 16 मई 2024

मन

 

मन जब करता मन से बातें


चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते

 

हृदय डोर ही परिणय का छोर

सामाजिक बंधन परिवार अंजोर

समाज में सही सामाजिक बातें

चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते

 

आदिकाल से यह मन चंचल

मन चाहे कोई मनचाहा संबल

मन रम जाए सुधि रचि गाते

चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते

 

मानव इतिहास में हृदय नर्तन

जैसा तब था अब भी संवर्धन

प्यार कभी बदला कहां यह बातें

चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते।

 

धीरेन्द्र सिंह

16.05.2024

18.19

बुधवार, 15 मई 2024

धुन

 

मेरी तन्हाइयों में यूं जो गुनगुनाओगी

द्वार हृदय अपने खुद उलझ जाओगी

 

सूर्य की किरणों सा पहुंच जाता हूँ

तपिश सा राग में घुल जाता हूँ

रागिनी चुन-चुन हो मगन सुनाओगी

द्वार हृदय अपने खुद उलझ जाओगी



कृषक की आस बन मेघ सा निहारूँ

तृषित नयनों से जलसृष्टि पुकारूं

मेघराग में आच्छादित छा जाओगी

हृदय द्वार अपने खुद उलझ जाओगी

 

संभलना भावनाओं की पुकारती डगर

खंगालना शब्दों की भोली सी नज़र

कहां क्या दांव ठाँव तुम समझ पाओगी

हृदय द्वार अपने खुद उलझ जाओगी

 

गीतों में ढली तुम हो एक श्रेष्ठ काव्य

प्रतीकों में अंतस रागिनियों का निभाव

मैं धुन हूँ बिना जिसके क्या गा पाओगी

हृदय द्वार अपने खुद उलझ जाओगी।

 

धीरेन्द्र सिंह

15.05.2024

22.34

मंगलवार, 14 मई 2024

शोषण

 वाह

आह

ऊँह

नाह


चाह

आह

दाह

बाहं


राह

छाहँ

लांघ

माह


डाह

स्वाह

आह

थाह।


धीरेन्द्र सिंह

14.05.2024

21.12


सोमवार, 13 मई 2024

खुमारी या विरह नाद


 

समर्पित प्रेम में होता यह विषय विवाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद

 

अंतस हिलोर मारे अभिलाषाओं की शुमारी

गहन तरंग उठे असीम चेतना की खुमारी

प्रणय पुष्प सा फले, फूले, महके निर्विवाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद

 

एक ही धूरी पर प्रणय की अनंत शाखाएं

कुछ मीरा कहें कुछ संग राधा गुनगुनाएं

क्या प्रेम मात्र एक छात्र एक पाठ संवाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद

 

किस तरफ शौर्य का गुंजित है अभिमान

बिना साहस प्रेम का हो सके ना ज्ञान

कान्हा की बांसुरी तो सुदर्शन चक्र निनाद

मीरा सी खुमारी या राधा सा विरह नाद।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.05.2024

16.39